दिल्ली में को लेकर जारी गतिरोध के बीच केंद्र सरकार पर बुलाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। एक ओर जहां किसानों ने इस मुद्दे पर सरकार से स्पेशल सेशन की मांग की है, वहीं कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दलों ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर कहा है कि किसान आंदोलन और कोरोना काल में टीकाकरण समेत तमाम मुद्दों पर चर्चा के लिए सदन का सत्र बुलाना आवश्यक है। इस मांग को करने वाले दलों में कांग्रेस के अलावा एनसीपी समेत कुछ अन्य दल शामिल हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी (Adheer Ranjan Choudhary) ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से किसानों के आंदोलन और कोविड-19 के टीकाकरण की तैयारी समेत महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कराने को छोटी अवधि का शीतकालीन सत्र (Winter Session of Parliament) बुलाने का अनुरोध किया है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने बिरला को लिखे एक पत्र में कोविड-19 संबंधी सभी प्रोटोकॉल के साथ सदन का शीतकालीन सत्र आहूत करने को कहा है ताकि लोग देश के मौजूदा महत्वपूर्ण मुद्दों से अवगत हो सकें।
पत्र में कई मुद्दों का किया जिक्र
पत्र में कहा गया है, ‘कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनका वर्तमान में देश सामना कर रहा है। इसमें सबसे उल्लेखनीय किसानों का मौजूदा आंदोलन और कोविड-19 टीके की स्थिति और तैयारियों के विषय हैं।’ चौधरी ने आर्थिक सुस्ती, बेरोजगारी की स्थिति, भारत-चीन सीमा पर लगातार जारी गतिरोध, भारत-पाकिस्तान सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में बढ़ोतरी जैसे मुद्दों का भी उल्लेख किया है।
एनसीपी ने किया कांग्रेस की मांग का समर्थन
कांग्रेस की विशेष सत्र बुलाने की मांग का समर्थन करते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस ने भी कहा है कि सरकार को देश के तमाम मुद्दों पर चर्चा कराई जानी चाहिए। एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र की अधीर रंजन जी की मांग सही है। सत्र नहीं शुरू करना और सवालों से बचना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। विपक्ष और किसान मांग कर रहे हैं कि अगर 2 दिनों के लिए संसद सत्र बुलाया जा सकता है।
किसानों ने सरकार के सामने रखी थी डिमांड
बता दें कि किसानों ने दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार से मांग की थी कि वह कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाए। दिल्ली में किसानों के आंदोलन से काफी दिनों से गतिरोध की स्थितियां बनी हुई हैं। किसानों से तमाम दौर की बातचीत के बीच अब तक कृषि कानून पर मध्य का रास्ता नहीं निकल सका है। वहीं पंजाब से लेकर दिल्ली तक इन कानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच एक आपसी जिच की स्थितियां दिख रही हैं।