किसान आंदोलनः 8 पॉइंट में समझिए क्या चाहते हैं किसान, कहां फंसा है पेच

नई दिल्ली
कृषि कानूनों (Krishi Kanoon) का विरोध कर रहे किसानों (Kisan Andolan) और केंद्र सरकार के बीच गुरुवार को हुई बातचीत थोड़ी आगे तो बढ़ी लेकिन अभी भी कई मुद्दों पर किसान नेता सरकार से असहमत हैं। दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों और सरकार के बीच अब 5 दिसंबर को एक और बात होनी है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर () ने उम्मीद जताई है कि अगली बातचीत में कोई ठोस नतीजा निकल सकता है। आइए जानते हैं कि चौथे दौर की बातचीत में किसान किन मांगों के लिए अड़े हुए हैं..

इन मुद्दों पर है मतभेद

1-कृषि बाजार और कंट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून से बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा।

-कृषि खरीद पर नियंत्रण हो जाएगा।

-कानून के कारण निजी कृषि बाजार के बन सकती है और वो मूल्यों को नियंत्रित कर सकते हैं।

-कृषि उत्पादों की सप्लाई और मूल्यों पर भी नियंत्रण हो सकता है।

-इसके जरिए भंडारण, कोल्ड स्टोरेज और फसलों के ट्रांसपोटेशन पर भी नियंत्रण होने की आशंका और इसके जरिए फूड प्रोसेसिंग पर एकाधिकार का डर।

-नए कानून से मंडी सिस्टम के खत्म हो जाएगी

2-आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा।

-सभी शहरी और ग्राणीण गरीबों को बड़े किसानों और निजी फूड कारपोरेशन के हाथों में छोड़ देना होगा।

3-कृषि व्यापार फर्म्स, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, ऐक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर अपने हिसाब से बाजार को चलाने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों को नुकसान होगा।

4-कंट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से जमीन के मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कंट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। कर्ज वसूलने के लिए कंपनियों का अपना मैकनिजम होता है।

5-किसान अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे। ‘फ्रीडम ऑफ च्वाइस’ के नाम पर बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे।

6-इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए SDM कोर्ट को फाइनल अथॉरिटी बनाया जा रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए।

7-कृषि अवशेषों के जलाने पर किसानों को सजा देने को लेकर भी किसानों में रोष है। किसानों का कहना है कि नए कानून में किसानों को बिना आर्थिक तौर पर मजबूत किए नियम बना दिए गए हैं।

8-प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) कानून के कारण किसानों को निजी बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूर होना पड़ेगा।

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