किसानों के महाआंदोलन को अब देशव्यापी रूप देने की तैयारी है। शनिवार को देशभर में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होंगे। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर (मंगलवार) को भारत बंद बुलाया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के किसान संगठनों की बैठक में भारत बंद को पर सहमति बनी। सरकार के साथ जारी बातचीत फलीभूत होगी, इसे लेकर किसान संगठनों को शक है। एकमत से यह तय हुआ कि उनके प्रतिनिधि सरकार से नए कानूनों को रद्द करने के लिए कहेंगे, इससे कम पर बात नहीं बनेगी। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के जगमोहन सिंह ने दिल्ली के और ‘बॉर्डर पॉइंट्स’ ब्लॉक करने की चेतावनी दी है। ‘भारत बंद’ क्यों है, कहां-कहां इसका असर दिख सकता है और कैसे इसे टाला जा सकता है, आइए इसे समझते हैं।
Bharat Bandh on 8 December 2020: केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए किसान संगठनों ने 8 दिसंबर 2020 को ‘भारत बंद’ बुलाया है। किसानों की मांग है कि सरकार कृषि क्षेत्र से जुड़े तीनों नए कानूनों (New Farms Laws) को पूरी तरह वापस ले।
किसानों के महाआंदोलन को अब देशव्यापी रूप देने की तैयारी है। शनिवार को देशभर में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होंगे। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर (मंगलवार) को भारत बंद बुलाया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के किसान संगठनों की बैठक में भारत बंद को पर सहमति बनी। सरकार के साथ जारी बातचीत फलीभूत होगी, इसे लेकर किसान संगठनों को शक है। एकमत से यह तय हुआ कि उनके प्रतिनिधि सरकार से नए कानूनों को रद्द करने के लिए कहेंगे, इससे कम पर बात नहीं बनेगी। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के जगमोहन सिंह ने दिल्ली के और ‘बॉर्डर पॉइंट्स’ ब्लॉक करने की चेतावनी दी है। ‘भारत बंद’ क्यों है, कहां-कहां इसका असर दिख सकता है और कैसे इसे टाला जा सकता है, आइए इसे समझते हैं।
क्यों पड़ी है भारत बंद बुलाने की जरूरत?
तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग लेकर हजारों-हजार किसान सड़क पर हैं। दिल्ली से लगने वाली सीमाएं ब्लॉक कर दी गई हैं। केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आज अगले दौर की बातचीत होनी है। किसान कानून वापस लेने से कुछ भी कम स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। सरकार थोड़ी नरम दिख रही है लेकिन पूरी तरह रोलबैक का फैसला उसके लिए शर्मिंदगी भरा होगा। अधिकारी किसान संगठनों की मुख्य आपत्तियों को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं कि बीच का कोई रास्ता निकल आए। मगर किसान संगठनों को इसकी उम्मीद कम ही लग रही है और ऐसे में वह भारत बंद बुलाकर सरकार पर दबाव और बढ़ाना चाहते हैं। शनिवार को कई जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले भी फूंके जाएंगे।
किसने बुलाया है 8 दिसंबर को भारत बंद?
देशभर के किसान संगठनों ने। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी ने भी भारत बंद को अपना समर्थन दिया है। इस संस्था के तहत देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन आते हैं। यानी सरकार को यह साफ इशारा कर दिया गया है कि किसान आंदोलन राष्ट्रव्यापी होने जा रहा है और आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा ही। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों ने खुलकर आंदोलन का समर्थन किया है तो बाकी विपक्षी दल भी सरकार को घेरे हुए हैं। कुछ राजनीतिक दल भारत बंद को भी अपना समर्थन दे सकते हैं।
कहां-कहां दिख सकता है भारत बंद का असर?
जरूरी सेवाओं को छोड़कर शायद हर जगह। किसान संगठनों ने दिल्ली के बॉर्डर्स पर कब्जा कर लिया है। 8 दिसंबर को भारत बंद वाले दिन, देशभर में चक्का जाम की तैयारी है। रेल सेवाओं को भी प्रभावित करने की कोशिश होगी। कृषि आधारित इलाकों में बंद का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। बाजार से लेकर सामान्य जनजीवन पर बुरा असर पड़ने की पूरी संभावना है। सड़कें जाम होने से सप्लाई चेन्स और ट्रांसपोर्ट सर्विसिज की कमर टूट सकती है। अगर राजनीतिक दल भी भारत बंद के समर्थन में उतरते हैं तो फिर उसके असर का दायरा और बढ़ सकता है। इमर्जेंसी और जरूरी सेवाओं को बंद से दूर रखने की बात किसान संगठन कहे चुके हैं।
किस बात के लिए आंदोलनरत हैं किसान?
किसानों का विरोध केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में बनाए गए तीनों कानूनों को लेकर है। यह तीनों बिल सीधे-सीधे देश के कृषि क्षेत्र पर असर डालते हैं। आइए समझते हैं कि इन कानूनों में क्या है और इनका विरोध किसलिए हो रहा है।
1. कृषि बाजारों को लेकर कानून
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम- 2020
कानून में क्या है?
ऐसा ईकोसिस्टम बनना जहां किसान और व्यापारी राज्यों की APMCs के तहत आने वाली ‘मंडियों’ से इतर बेचने और खरीदने की स्वतंत्रता पा सकें।
फसल के बैरियर-फ्री इंटरस्टेट और इन्फ्रा-स्टेट ट्रेड को बढ़ावा देना।
इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए ढांचा उपलब्ध कराना।
क्यों हो रहा विरोध?
राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा क्योंकि अगर किसान रजिस्टर्ड APMC मंडियों से इतर फसल बेचेंगे तो ‘मंडी शुल्क’ नहीं देना होगा।
अगर खेती का पूरा व्यापार ‘मंडियों’ से बाहर चला जाए तो राज्यों में ‘कमिशन एजेंट्स’ का क्या होगा?
इससे MSP आधारित खरीद व्यवस्था खत्म हो सकती है।
e-NAM जैसी इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में मंडी जैसी ही व्यवस्था होती है। अगर ट्रेडिंग के अभाव में मंडियां बंद हुईं तो e-NAM का क्या होगा?
2. कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर नया कानून
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन व कृषि सेवा पर करार कानून 2020
कानून में क्या है?
किसान सीधे एग्री-बिजनस फर्मों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से भविष्य की फसल का पहले से तय कीमत पर कॉन्ट्रैक्ट कर सकेंगे।
पांच हेक्टेयर से कम खेतिहर जमीन वाले किसानों को एग्रीग्रेशन और कॉप्न्ट्रैक्ट के जरिए फायदा होगा (भारत में कुल किसानों का 86% इसी कैटेगरी में)
मार्केट की अनिश्चितता के खतरे को किसानों से हटाकर स्पांसर्स पर ट्रांसफर करना।
आधुनिक तकनीक के जरिए किसानों को बेहतर इनपुट्स देना।
मार्केटिंग की लागत घटाना और किसानों की आय बढ़ाना।
पूरी कीमत पाने के लिए किसान बिचौलियों को किनारे कर सीधे डील कर सकते हैं।
क्यों है विरोध?
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के पास मोलभाव करने की क्षमता कम हो जाएगी।
स्पांसर्स को शायद छोटे किसानों के साथ सौदे अच्छे न लगें।
अगर कोई विवाद हुआ तो प्राइवेट कंपनियां, होलसेलर्स और प्रोसेसर्स के पास बेहतर कानूनी विकल्प होंगे।
3. कमोडिटीज से जुड़ा कानून
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020
कानून में क्या है?
अनाज, दालों, तेल प्याज और आलू जैसी फसलों को जरूरी वस्तुओं की सूची से बाहर करना। इससे वे स्टॉक होल्डिंग लिमिट से बाहर हो जाएंगे (असाधारण परिस्थितियों में अपवाद बरकरार)।
इससे कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र/एफडीआई को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि निवेशकों के मन से दखलअंदाजी का डर कम होगा।
कोल्ड स्टोरेज, फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाने के लिए निवेश आएगा।
कीमतें स्थिर करने में किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों की मदद होगी।
क्यों हो रहा विरोध?
‘असाधारण परिस्थितियों’ के लिए तय कीमतों की सेवाएं इतनी ज्यादा हैं कि शायद वे कभी लागू न हों सकें।
बड़ी कंपनियों को स्टॉक जमा करने की अनुमति होगी यानी वे किसानों को अपने मुताबिक चला सकती हैं।
प्याज के निर्यात बैन पर हाल में लगी रोक से इसके लागू होने पर कन्फ्यूजन।
अबतक कितनी बार हो चुकी है केंद्र-किसानों में बातचीत?
नये कृषि काननू को लेकर केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान नेताओं की चौथी बैठक 3 दिसंबर को हुई थी। इससे पहले, एक दिसंबर और 13 नवंबर को किसान नेताओं के साथ मंत्री स्तर की वार्ता हुई थी। जबकि कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ नये कानूनों को लेकर किसान प्रतिनिधियों की वार्ता इन बैठकों से पहले ही हुई थी। शनिवार को पांचवें दौर की बातचीत होनी है।