हिंद महासागर में 120 से ज्यादा युद्धपोत, CDS बोले- चीन के सामने भारत को बनना होगा दीवार

नई दिल्लीचीन विश्व शांति के लिए बड़े खतरे के तौर पर उभर रहा है। उसकी नापाक मंशा को भांप ताकतवर देश गोलबंद हो गए हैं। इसी का नतीजा है कि क्षेत्र में अभी 120 से ज्यादा युद्धपोत (Warships) तैनात हैं। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने इसकी जानकारी दी है। वो शुक्रवार को भारत और एशिया के साथ-साथ वैश्विक शांति की दृष्टि से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्व का जिक्र कर रहे थे।

‘भारत के लिए बढ़ गई हैं सुरक्षा की चुनौतियां’
जनरल रावत ने यह भी कहा कि आज भारत बढ़ी हुई सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है और शांति और स्थिरता के लिए सबसे अच्छा गारंटर है। हालांकि रावत ने पिछले सात महीनों से लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीन के साथ चल रहे गतिरोध का उल्लेख नहीं किया, लेकिन उन्होंने भारत-प्रशांत क्षेत्र के कई संदर्भों में एशियाई पड़ोसी का इशारों-इशारों में जिक्र जरूर किया।

चीन की हरकतों ने दुनिया का ध्यान खींचा
जनरल रावत ने ये बातें ग्लोबल डायलॉग सिक्यॉरिटी समिट में अपने संबोधन के दौरान कहीं। उन्होंने वैश्विक दबदबे के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा (Contesting the Indo Pacific for Global Domination) विषय पर बोलते हुए कहा, “हाल के वर्षों में चीन की अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति बढ़ने के साथ-साथ क्षेत्र को प्रभावित करने की प्रतिस्पर्धा ने दुनियाभर का ध्यान आकर्षित किया है। अभी क्षेत्र से इतर से आए 120 से ज्यादा युद्धपोत हिंद प्रशांत क्षेत्र में अलग-अलग मिशनों के लिए तैनात हैं। विवादों को दिए जाएं तो क्षेत्र में अब तक शांति बनी रही है।”

हिंद महासागर क्षेत्र में बाहरी देशों के भी युद्धपोत
उन्होंने कहा कि हिंद महासागर में इस क्षेत्र से बाहर के देशों ने भी अपने युद्धपोत भेज रखे हैं। ये युद्धपोत अलग-अलग मिशनों को अंजाम दे रहे हैं। सीडीएस ने कहा, “क्षेत्र के ज्यादातर देश उन्नत संपर्क साधनों और समुद्री अर्थव्यवस्था का दोहन कर ज्यादा-से-ज्यादा आर्थिक लाभ पाने की फिराक में हैं जिसके लिए आधारभूत ढांचों का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। क्षेत्र और बाहर की ताकतों ने वैश्विक राजनीति को संतुलित रखने और उसे अपने प्रभाव में लेने के लिए इन देशों के इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट में निवेश कर रही हैं।”

जमीन और सीमा की सुरक्षा दुरुस्त करने में जुटा भारत
जनरल रावत ने कहा कि भारत जैसे देशों के लिए भूमि और सीमाओं की सुरक्षा एक प्राथमिक चिंता है। उन्होंने कहा, “इसलिए, खतरों और चुनौतियों की प्रकृति के सही आकलन के आधार पर हमारे सशस्त्र बलों द्वारा किए जाने वाले आधुनिकीकरण कार्यक्रमों को सुनिश्चित करने के लिए एकीकृत संरचनाओं को विकसित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, हम हमारे क्षेत्र में स्थिरता और शांति सुनिश्चित करने के लिए समान विचारधारा वाले राष्ट्रों के साथ भी साझेदारी कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “सुरक्षा के लिए हमारे द्दष्टिकोण को एकपक्षीय प्रारूप से बहुपक्षीय प्रारूप में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, जो बढ़ते प्रशिक्षण, साझेदार देशों के साथ जुड़ाव को बढ़ाता है, ताकि भविष्य में संयुक्त प्रतिक्रिया को उपजाऊ बनाया जा सके।”

हिंद प्रशांत पर सभी ताकतवर देशों की नजर
उन्होंने कहा कि अमेरिका, इंडो-पैसिफिक को उसके भविष्य के लिए प्रभावी मानता है। इसी तरह जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन, इंडोनेशिया और जर्मनी भी उनके लिए इसे सामरिक महत्व का क्षेत्र पाते हैं। रावत ने कहा कि हालांकि एक सैन्य और आर्थिक शक्ति के रूप में चीन के उदय ने क्षेत्र को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है। एक बढ़ती क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों के आधार पर उन्होंने कहा, “हमें अपने रक्षा बलों की क्षमता निर्माण और विकास के लिए संरचित लंबे समय की योजना बनाने की आवश्यकता है। मजबूत भारत के निर्माण की तलाश में हमें एक शांतिपूर्ण और स्थिर सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता है।”

हमें बहुपक्षीय तंत्र बनाने की जरूरत: सीडीएस
सीडीएस रावत ने कहा, “हमें अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों, क्षेत्रीय संपर्कों के साथ रणनीतिक स्वायत्तता और सहकारी संबंधों को बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत (जेएआई), भारत-आसियान और इसी तरह के मौजूदा तंत्रों का सही संतुलन रखने के लिए द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय तंत्र बनाने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी किसी भी राष्ट्र के वर्चस्व की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, चाहे वह सैन्य क्षेत्र में हो या किसी अन्य क्षेत्र में हो। इसलिए, अनुसंधान और विकास में निवेश किसी भी उद्यम के लिए भविष्य की कार्रवाई का निर्धारण करेगा।

टेक्नॉलजी निभाएगी की प्रमुख भूमिका
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि टेक्नॉलजी एक निवारण का साधन बननी चाहिए, न कि विनाश का स्रोत। उन्होंने कहा, “टेक्नॉलजी का मानव जाति को लाभ होना चाहिए और इसका उपयोग मौजूदा सिस्टम को नष्ट करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।” जनरल रावत ने एक सकारात्मक टिप्पणी पर अपना संबोधन समाप्त करते हुए कहा कि यह भारत की सदी है। उन्होंने कहा, “भारत को लेकर दुनिया भर में बहुत से लोग आशावान हैं। इसमें प्रतिभा, जनसांख्यिकीय लाभांश और संस्कृति की जीवंतता शामिल है।”

(एएनआई और आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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