संजय गांधी… भारतीय राजनीति का ऐसा नाम जो जब तक जिया, लाइमलाइट में रहा। इंदिरा गांधी और फीरोज गांधी के दो बेटों में से छोटे, संजय का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को हुआ था। मां और भाई राजीव गांधी के साथ संजय के रिश्तों को लेकर मीडिया में काफी कुछ कहा जा चुका है। संजय के बारे में कुछ बातों पर अधिकतर लोग सहमत हैं। एक ये कि वे कुछ बात दिल में नहीं रखते थे। जो मन में होता था, कह देते थे। वक्त के बड़े पाबंद थे मगर एक बार कुछ ठान लेते तो किसी के लाख समझाने पर भी नहीं सुनते थे। तेज गाड़ी चलाने के शौकीन रहे संजय के जन्मदिन पर उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से आपको बताते हैं।
Sanjay Gandhi birth anniversary: संजय गांधी और मेनका गांधी में तल्खी एक बार इतनी बढ़ गई थी कि मेनका ने शादी की अंगूठी निकाल कर फेंक दी थी। इंदिरा गांधी इससे बेहद नाराज हुईं क्योंकि वो अंगूठी उन्हें मां कमला नेहरू से मिली थी।
संजय गांधी… भारतीय राजनीति का ऐसा नाम जो जब तक जिया, लाइमलाइट में रहा। इंदिरा गांधी और फीरोज गांधी के दो बेटों में से छोटे, संजय का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को हुआ था। मां और भाई राजीव गांधी के साथ संजय के रिश्तों को लेकर मीडिया में काफी कुछ कहा जा चुका है। संजय के बारे में कुछ बातों पर अधिकतर लोग सहमत हैं। एक ये कि वे कुछ बात दिल में नहीं रखते थे। जो मन में होता था, कह देते थे। वक्त के बड़े पाबंद थे मगर एक बार कुछ ठान लेते तो किसी के लाख समझाने पर भी नहीं सुनते थे। तेज गाड़ी चलाने के शौकीन रहे संजय के जन्मदिन पर उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से आपको बताते हैं।
‘संजय को देखकर कोई अपनी घड़ी मिला सकता था’
संजय गांधी को करीब से देखने वाले उन्हें वक्त का बड़ा पाबंद बताते हैं। ‘द संजय स्टोरी’ में विनोद मेहता ने लिखा है कि 1 अकबर रोड पर सुबह 8 बजे संजय गांधी का दिन शुरू हो जाता था। अधिकारी संजय को अपनी डेली रिपोर्ट देते और ऑर्डर लेते जाते। संजय की सरकार में कोई हैसियत नहीं थी, लेकिन ज्यादातर लोग उन्हें ‘सर’ कहते थे। कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने बीबीसी से बातचीत में एक बार कहा था कि संजय वक्त के इतने पाबंद थे कि आप उन्हें देखकर अपनी घड़ी मिला सकते थे।
(फोटो: नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी)
जब मेनका ने गुस्से में फेंक दी शादी की अंगूठी
हर जोड़े की तरह मेनका और संजय की जिंदगी में भी खटपट चलती रहती थी। एक बार संजय की किसी बात से मेनका इतनी आगबबूला हो गई थीं कि शादी की अंगूठी निकालकर उनकी ओर फेंक दी थी। रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘24 अकबर रोड’ में इस किस्से का जिक्र किया है। किदवई के मुताबिक, मेनका की इस हरकत से इंदिरा बेहद नाराज हुई थीं क्योंकि वो अंगूठी उन्हें अपनी मां कमला नेहरू से मिली थी। सोनिया उस वक्त वहीं थीं। उन्होंने वो अंगूठी उठाई और यह कहकर रख ली कि वे प्रियंका के लिए इसे संभालेंगी।
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‘पार्टी में सबके सामने संजय ने इंदिरा पर हाथ उठाया’
जब इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा की, पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित पत्रकार लुईस सिमंस उस वक्त दिल्ली में वॉशिंगटन पोस्ट के संवाददाता थे। सिमंस को पांच घंटों के भीतर देश छोड़ने को कहा गया था। बैंकॉक के होटल में बैठकर उन्होंने एक रिपोर्ट फाइल की जो बाद में जंगल में आग की तरह फैली। उन्होंने दावा किया कि इमर्जेंसी की घोषणा से कुछ दिन पहले हुई एक डिनर पार्टी में संजय गांधी ने सबके सामने इंदिरा को छह तमाचे जड़े थे। सिमंस ने पार्टी में मौजूद दो लोगों के हवाले से यह दावा किया। यह खबर बड़ी तेजी से फैली। विदेशी मीडिया ने चटखारे लगाकर खबर छापी।
वरुण के पैदा होने पर लेबर रूम में घुस गए थे संजय
रशीद किदवई की किताब में मेनका गांधी ने संजय से जुड़ी एक रोचक घटना का जिक्र किया है। तब मेनका गर्भवती थीं और दिल्ली के एम्स में भर्ती थीं। मेनका के मुताबिक, डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि जब वरुण गांधी पैदा हुए तो संजय पहले शख्स थे जो डिलिविरी रूम में आए थे। मेनका ने संजय को एक ऐसे पति के रूप में पाया जो उनका बेहद खयाल रखता था। मेनका कहती हैं कि जब भी उनकी तबीयत खराब होती तो संजय सारा कामकाज छोड़कर उनके पास रहा करते थे।
’किस्सा कुर्सी का’ से क्यों थी संजय को दिक्कत?
इंदिरा गांधी की सरकार में संजय गांधी की तूती बोलती थी। आपातकाल के वक्त देश ने जो दौर देखा, उसमें संजय की बड़ी भूमिका थी। प्री-सेंसरशिप लागू थी। फिल्मों की समीक्षा के बाद उन्हें मंजूरी दी जाती थी। ‘किस्सा कुर्सी का’ 1975 में रिलीज होनी थी मगर समीक्षा में ‘आपत्तिजनक’ मिलने पर नोटिस भेजा गया। 51 आपत्तियां गिनाई गई थीं। आपातकाल में फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। जनता पार्टी की सरकार बनी तो संजय गांधी पर फिल्म के मूल प्रिंट को जला देने का आरोप लगा। शाह कमिशन ने संजय को दोषी भी पाया था। इसके अलावा गुलजार की ‘आंधी’ को भी बैन कर दिया गया था। किशोर कुमार के गाने ऑल इंडिया रेडियो पर बैन करा दिए गए थे।
(फोटो: नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी)
मौत के बाद पूरा हुआ ‘मारुति’ का सपना
संजय गांधी को कारों और विमानों का बड़ा शौक था। कॉलेज छोड़कर रॉल्स रॉयस के साथ इंटर्नशिप करने वाले संजय जब लौटकर आए तो भारतीय माहौल के हिसाब से एक कार बनाने की सोची। दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप तैयार की गई। मां से इसपर बात हुई तो उन्होंने एक सरकारी कंपनी बना दी। इस तरह जून 1971 में ‘मारुति मोटर्स लिमिटेड’ अस्तित्व में आई और संजय उसके मैनेजिंग डायरेक्टर बने। विनोद मेहता ने ‘द संजय स्टोरी’ में लिखा है कि इमर्जेंसी लगी और उसके बाद इंदिरा सत्ता से बाहर हो गईं। जनता पार्टी की सरकार ने प्रॉजेक्ट बंद कर उसकी जांच बैठा थी। इंदिरा 1980 में सत्ता में लौटीं लेकिन कुछ महीने बाद ही संजय गांधी एक प्लेन क्रैश में मारे गए। करीब तीन साल बाद, दिसंबर 1983 में मारुति 800 लॉन्च हुई और पूरे देश में छा गई। संजय का सपना उनकी मौत के बाद पूरा हो पाया।
(फोटो: नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी)