अमेरिका और ब्रिटेन चीन की विस्तारवादी नीतियों का खुलकर विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को स्थापित करने के लिए ये दोनों ही देश अपनी विदेश नीति में भारत को खास महत्व भी दे रहे हैं। G-7 की बैठक में भारत को शामिल करने के बाद ये दोनों ही देश आने वाले दिनों में (डेमोक्रेसी-10) नाम का एक अलायंस भी बनाने जा रहे हैं। इस अलायंस में दुनिया के 10 सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया जाएगा।
चीन के खिलाफ बनेगा D-10 अलायंस?
अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के 10 लोकतांत्रिक देश जब एकजुट होंगे तो निश्चित ही इससे चीन को परेशानी होगी। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका और यूरोपीय देशों की बढ़ती दिलचस्पी भी चीन के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। चीन में लोकतंत्र नहीं है, ऐसे में अगर दुनिया के 10 सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश एक अलायंस बनाते हैं तो चीन की मुश्किलें जरूर बढ़ेंगी। यह भी एक फैक्ट है कि दुनिया के जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं उनमें से अधिकतर देशों में चीन विरोधी भावना उफान पर है।
ट्रंप के रास्ते पर चलेंगे अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाइडन
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। सैन्य संबंधों से लेकर आर्थिक हितों तक दोनों देशों के बीच कई समझौते भी हुए हैं। माना जा रहा है कि अगले राष्ट्रपति जो बाइडन भी ट्रंप के ही रास्ते पर चलेंगे। अमेरिका के लिए एशिया में अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए भारत की जरूरत है। ऐसे में बाइडन कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे, जिससे भारत के साथ उनके रिश्तों पर असर पड़े।
ब्रिटेन भी भारत से मजबूत कर रहा संबंध
ठीक, ऐसा ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में भी हुआ है। इस बार भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनकर आ रहे ब्रिटिश पीएम ने भी जी-7 की बैठक में फिर से भारत को निमंत्रित किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि देश की बागडोर संभालने और यूरोपीय यूनियन से बाहर होने के बाद यह पीएम जॉनसन का पहला भारत दौरा है। वह नए साल में पहला विदेश दौरा भारत से कर इंडो पैसिफिक क्षेत्र में अपनी दिलचस्पी को भी दिखा रहे हैं।
चीन के नजदीक सेना तैनात करेगा ब्रिटेन
हाल में ही पीएम जॉनसन ने संसद में ऐलान किया था कि 2021 में ब्रिटेन का सबसे ताकतवर एयरक्राफ्ट कैरियर एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ को एशिया में तैनात किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के साथ हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर बढ़ती तल्खी के बाद ब्रिटेन ने अपनी आर्मी को तैनात करने का फैसला किया है। ब्रिटेन पहले ही चीनी कंपनी हुआबे के 5जी कांट्रेक्ट को रद्द कर चुका है।