कोरोना वायरस की वैक्सीन दुनिया के कुछ हिस्सों में आम जनता को लगना शुरू हो गई है। अपने यहां भी टीकाकरण अभियान की तैयारियां चल रही हैं। भारत में वैक्सीन के इमर्जेंसी अप्रूवल के लिए तीन-तीन कंपनियों ने अप्लाई किया है। इनमें से फाइजर की वैक्सीन के शॉट्स अमेरिका समेत कई देशों में दिए जाने लगे हैं। भारत में टीकाकरण की शुरुआत होने से पहले, कोरोना वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की बातें फैल रही हैं। इनमें से कुछ तो सरासर अफवाह है और कुछ में भ्रामक जानकारी है। सोशल मीडिया पर ऐसी बातों से आप भी दो-चार हुए होंगे। कोरोना वैक्सीन को लेकर इन 10 बातों का सच आप भी जान लीजिए।
Covid 19 Coronavirus Vaccine lies: शायद आपने भी कोरोना वैक्सीन से जुड़ी इन बातों को पढ़ा हो या सोशल मीडिया पर शेयर किया हो, मगर इनमें से हर एक बात झूठ है।
कोरोना वायरस की वैक्सीन दुनिया के कुछ हिस्सों में आम जनता को लगना शुरू हो गई है। अपने यहां भी टीकाकरण अभियान की तैयारियां चल रही हैं। भारत में वैक्सीन के इमर्जेंसी अप्रूवल के लिए तीन-तीन कंपनियों ने अप्लाई किया है। इनमें से फाइजर की वैक्सीन के शॉट्स अमेरिका समेत कई देशों में दिए जाने लगे हैं। भारत में टीकाकरण की शुरुआत होने से पहले, कोरोना वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की बातें फैल रही हैं। इनमें से कुछ तो सरासर अफवाह है और कुछ में भ्रामक जानकारी है। सोशल मीडिया पर ऐसी बातों से आप भी दो-चार हुए होंगे। कोरोना वैक्सीन को लेकर इन 10 बातों का सच आप भी जान लीजिए।
‘वैक्सीन जल्दबाजी में बनीं, सेफ नहीं’
ये बात सच है कि वैक्सीन बनने में सालों लगते हैं लेकिन कोरोना वैक्सीन के लिए कोई ‘शॉर्टकट’ नहीं लिया गया है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ट्रांसलेशनल बायोमेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर मार्क तोशनर के मुताबिक, वैक्सीन बनने में पहले 10 साल इसलिए लगते थे क्योंकि कई सारी ‘असहमतियों, व्यापारिक दबावों, किस्मत और लालफीताशाही” से लड़ना पड़ता था। कोरोना वैक्सीन के लिए सरकारों और अन्य एजेंसियों ने ऐसी चुनौतियां पेश नहीं कीं।
‘वैक्सीन से कोविड हो जाएगा’
नहीं। ज्यादातर कोविड वैक्सीन में पूरा वायरस नहीं है, बल्कि उसका एक हिस्सा भर है। टीकाकरण के बाद बुखार व अन्य हल्के-फुल्के साइड इफेक्ट्स आपके इम्युन सिस्टम के रेस्पांस की वजह से होते हैं। कुछ टीकों में जरूर जिंदा कोविड वायरस का इस्तेमाल हुआ है, इनमें से दो भारत में ही बनी हैं लेकिन ‘कमजोर’ या निष्क्रिय वायरस आपको बीमार नहीं करेगा। आप खसरा, टीबी जैसी बीमारियों के लिए ऐसी वैक्सीन पहले ही ले चुके हैं।
‘वैक्सीन लगने का मतलब मास्क से मुक्ति’
ऐसा नहीं होगा। वैक्सीन से हर्ड इम्युनिटी डिवेलप होगी और वायरस का प्रसार रुक जाएगा। इसमें महीनों लग सकते हैं। हमें यह भी नहीं पता कि इम्युनिटी कितने वक्त के लिए मिलेगी और जिन्हें टीका लग चुका है, क्या वे खुद बीमार हुए बिना दूसरों को संक्रमण दे सकते हैं या नहीं। इसलिए कम से कम अभी के लिए तो मास्क कहीं नहीं जाने वाले।
‘वैक्सीन आपके DNA पर असर डालेगी’
फाइजर और मॉडर्ना की नई वैक्सीन mRNA पर आधारित है, इसका मतलब ये नहीं कि वे आपके DNA के लिए जीन एडिटिंग टूल्स का काम करेंगी। mRNA यानी ‘मेसेंजर राइबोन्यूक्लियक एसिड’ आपकी कोशिकाओं को ऐंटीबॉडीज बनाने के लिए निर्देश देता है लेकिन उसके न्यूक्लियस में नहीं घुसता। DNA न्यूक्लियस में रहता है।
‘वैक्सीन से जीवनभर सुरक्षा मिलेगी’
अभी यह कहना जल्दबाजी होगा। हमें इतना पता है टीका लगने के कुछ हफ्तों बाद इम्युनिटी बिल्ड-अप होना शुरू होती है। यह सालभर रहती है या कई साल तक, अभी हमें पता नहीं। वैक्सीन आपको गंभीर कोरोना संक्रमण होने के चांसेज को काफी हद तक कम कर देगी।
‘वैक्सीन का एक शॉट काफी है’
अधिकतर टीकों की दो डोज की जरूरत पड़ती है। एक्सपर्ट्स को अभी यह नहीं पता कि एक डोज से कितनी इम्युनिटी मिलती है, वे दोनों डोज का सुझाव दे रहे हैं। एक से बेहतर तो दो टीके हैं।
‘वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स कोविड से भी बुरे हैं’
सोशल मीडिया पर कई पोस्ट्स में वैक्सीन को लेकर मनगढ़ंत दावे किए जा रहे हैं। एक दावे में वैक्सीन के मॉर्टलिटी रेट (मौतों की दर) को वायरस से भी ज्यादा होने की बात कही जा रही है। एक अन्य पोस्ट में दावा है कि बिल गेट्स ने कहा है कि टीकों से 7 लाख लोगों की मौत हो सकती है। ये दोनों दावे सरासर झूठ हैं। गेट्स ने कहा था 7 लाख लोगों को साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। बुखार और टीके वाली जगह पर दर्द बेहद आम साइड इफेक्ट्स हैं और लंबे वक्त के लिए नुकसान नहीं करते।
‘वैक्सीन में चिप लगी होगी’
इस झूठे दावे की शुरुआत कुछ महीनों पहले हुई जब एक अमेरिकी कंपनी ने कहा था कि वह कोविड वैक्सीन के लिए पहले से भरी सीरिंज बनाएगी जिनके लेबल्स में RFID टैग्स लगे होंगे ताकि उन्हें ट्रैक किया जा सके। यानी चिप बॉक्स पर ही रहती है। वैसे भी लोगों में इंजेक्शन के जरिए माइक्रोचिप्स नहीं लगाई जा सकतीं क्योंकि उनका साइज बड़ा होता है।
‘पहला टीका लेने वाली को नाटक करने के पैसे दिए गए’
यूके में रहने वाली 90 साल की इस महिला को ट्रायल से इतन कोविड वैक्सीन का पहला इंजेक्शन दिया गया था। कई लोगों ने इन्हें ‘क्राइसिस ऐक्टर’ कहा यानी ऐसा शख्स जिसे वैक्सीन प्रमोट करने पैसे मिले हों। यह भी अफवाह उड़ी कि महिला की मौत 2008 में हो चुकी है मगर वह दावा भी फर्जी निकला।
‘फाइजर की वैक्सीन से महिलाओं में बांझपन होता है’
सोशल मीडिया पर वायरल कुछ पोस्ट्स में ऐसा मनगढ़ंत दावा किया जा रहा है। फैक्ट चेकर्स ने इस दावे का कोई आधार नहीं पाया कि वैक्सीन बांझपन या किसी अन्य गंभीर साइड इफेक्ट के लिए जिम्मेदार है।