सरकार अब भी इस बात पर कायम है कि कानून को वापस करने पर वह किसी भी तरह से विचार नहीं कर रही है, जबकि किसान इससे कम पर कुछ भी मंजूर करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में दोनों पक्षों को पता है कि बीच का रास्ता अब कठिन होने लगा है। सरकार के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार, इस बार जब बातचीत शुरू हाेगी तो इसी टकराव के बिंदु को नरम पहले किया जाएगा। इसके बाद सरकार किसानों को नए सिरे से प्रस्ताव देगी।
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किसानों के रुख के बाद आगे की रणनीतिसरकार ने किसानों को उनके हिसाब से तारीख तय कर वार्ता करने को बुलाया है। सूत्रों के अनुसार इसमें सरकार उनकी मांगों को संशोधन के रूप में शामिल करने का लिखित भरोसा देगी। साथ ही यह स्पष्ट रूप से संदेश देगी कि वह कानून को वापस नहीं लेगी लेकिन किसानों की हर आशंको दूर करेगी और उनके सुझावों को इसमें शामिल कर देगी।
कुछ हिस्सों के किसान समर्थन में
इसमें सरकार यह भी बताएगी कि देश के दूसरे हिस्सों के किसान इस आंदोलन के समर्थन में है। सरकार दोनों पक्षों के किसानों से संवाद भी कराने के विकल्प पर विचार कर रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि इस बार जो वार्ता शुरू होगी, फिर इस मामले का हल निकला जाएगा और आंदोलन समाप्त हो जाएगा।
राज्यों को अधिकार लेने का संशोधन भी अजेंडे मेंसरकार के पास बीच का रास्ता अपनाने वाले जो प्रस्ताव सामने आए हैं, उनमें एक है कि सरकार मौजूदा कानून में एमएसपी पर लिखित भरोसा दे और संशोधन कर राज्यों को अधिकार दे कि वह इस कानून को लागू करें या नहीं। हालांकि, अधिकतर राज्यों में बीजेपी का शासन है। ऐसे में किसान शायद ही इसके लिए तैयार हों। मोदी सरकार इस प्रस्ताव को विपक्षी दलों के सामने नए दांव के रूप में पेश करना चाहती है।