विंटर सोल्स्टिस: आज साल का सबसे छोटा दिन, रात को अंतरिक्ष में दिखेगा दुर्लभ संयोग

वॉशिंगटन
उत्‍तरी गोलार्द्ध में आज साल का सबसे छोटा दिन है। इसे () कहा जाता है। हर साल दिसंबर दक्षिणायन को दुनियाभर में क्रिसमस और नए साल के जश्‍न की शुरुआत माना जाता है। उत्‍तरी गोलार्द्ध में विंटर सोल्सटिस आमतौर पर 19 से 23 दिसंबर के बीच पड़ता है। इस साल विंटर सोल्सटिस बेहद खास होने जा रहा है क्‍योंकि 800 साल बाद ‘क्रिसमस स्‍टार’ आकाश में नजर आएगा। आइए जानते हैं पूरा मामला….

आज 21 दिसंबर का दिन धरती के उत्‍तरी गोलार्द्ध इसलिए खास है क्योंकि आज साल का सबसे छोटा दिन है और सबसे लंबी रात होगी। आज के बाद से दिन की लंबाई के साथ-साथ ठंड भी बढ़ने लगेगी। इसे इंग्लिश में Winter Solstice और हिंदी में दिसंबर दक्षिणायन कहा जाता है। तकनीकी रूप से विंटर सोल्सटिस उस समय होता है जब सूर्य सीधे मकर रेखा के ऊपर होता है।


धरती पर विंटर सोल्स्टिस क्यों होता है?

कभी कड़ाके की ठंड होती है तो कभी पसीना बहाने वाली गर्मी, यानी मौसम बदलता रहता है। साल में कुछ महीने गर्मी तो कुछ महीने सर्दी पड़ती है। सीजन और मौसम की तरह ही दिन और रात की लंबाइयां घटती-बढ़ती रहती है। कभी आपने यह सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। चलिए अगर नहीं सोचा है तो आज जान लीजिए। यह सब सिर्फ एक वजह से होता है और वजह धरती का झुके हुए अक्ष पर घूमना है। इसी कारण साल के आधे समय तक सूर्य उत्तरी ध्रुव की ओर झुका होता है तो बाकी आधे सालों में दक्षिण ध्रुव की ओर।

इससे सीजन तय होता है। जिस तरफ सूर्य का झुकाव ज्यादा होगा और ज्यादा से ज्यादा सूर्य प्रकाश वहां पहुंचेगा, वहां गर्मी का मौसम होगा। दूसरी ओर जिस तरफ सूर्य का प्रकाश कम पहुंचेगा, वहां ठंड होगी। पृथ्वी अपने अक्ष पर साढे 23 डिग्री झुकी हुई है, जिसके कारण सूर्य की दूरी उत्तरी गोलार्द्ध से अधिक हो जाती है। Winter Solstice के दौरान दक्षिणी गोलार्द्ध को सूर्य का प्रकाश ज्यादा प्राप्त होता है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध को कम। ऐसा 21,22 या 23 दिसंबर को होता है। इससे उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटा होता है और रात लंबी।

विंटर सोल्सटिस को कितने घंटे का दिन?
विंटर सोल्सटिस की तरह ही समर सोल्सटिस होता है। इस दिन रात की लंबाई छोटी होती है और दिन की बड़ी। समर सोल्सटिस 20,21 या 22 में से किसी जून को पड़ता है। इस दौरान सूर्य का प्रकाश उत्तरी गोलार्द्ध में ज्यादा पड़ता है और दक्षिणी गोलार्द्ध में कम। दिन की लंबाई भूमध्य रेखा से नजदीकी के आधार पर तय होती है। भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर जितना दूर होते जाएंगे, उतना छोटा दिन होगा और जितना दक्षिण की ओर जाएंगे, उतना लंबा दिन होता जाएगा।

विंटर सोल्सटिस वाले दिन सूर्यास्त का समय
अगर आप ऐसा सोचते हैं कि विंटर सोल्सटिस वाले दिन साल का सबसे जल्द सूर्यास्त होता है तो गलत हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के लिए यह सबसे छोटा दिन है तो इसका मतलब यह नहीं कि हर जगह पर उस दिन बहुत जल्द सूर्यास्त होगा और बहुत बाद में सूर्योदय। स्थान के हिसाब से सूर्यास्त और सूर्योदय का समय तय होता है। विंटर सोल्सटिस सबसे ठंडा दिन नहीं होता है। इस दिन भले ही उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का प्रकाश बहुत कम आता है लेकिन सबसे ठंडा महीना बाद में जनवरी और फरवरी में आता है। ठंड भी अलग-अलग स्थान के मुताबिक पड़ती है। एक ही समय में कहीं काफी ठंड होती है तो कहीं काफी कम।

अन्य ग्रहों पर भी होता है सोल्सटिस?
हमारे सौर परिवार का सभी ग्रह झुके हुए अक्ष पर घूमता है और यही वजह है कि वहां भी सीजन और सोल्सटिस होता है। कुछ ग्रहों पर अक्ष का झुकाव कम होता है जैसे बुध ग्रह के अक्ष का झुकाव 2.11 डिग्री होता है। लेकिन पृथ्वी (23.5 डिग्री) और यूरेनस (98 डिग्री) के अक्ष का झुकाव काफी ज्यादा होता है। विंटर सोल्सटिस का संबंध संक्रांति से भी बताया जाता है। ऐसा मानना है कि करीब 1700 साल पहले आज ही के दिन मकर संक्रांति मनाई जाती थी जिसे अब 14 जनवरी को मनाया जाता है।

विंटर सोल्सटिस पर आकाश में दुर्लभ नजारा
दुनियाभर के अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए आज की रात ऐतिहासिक होने जा रही है। क्रिसमस से ठीक पहले करीब 800 साल बाद अंतरिक्ष में बृहस्‍पति-शनि ग्रह एक-दूसरे के इतने करीब आ जाएंगे कि देखकर ऐसा लगेगा कि दोनों ग्रह एक-दूसरे में समा गए हैं। बृहस्‍पति-शनि के मिलन का नजारा अपने आप में दुर्लभ है क्‍योंकि यह किसी शख्स के जीवनकाल में एक ही बार आता है। इसीलिए इसे महान संयोग (The Great Conjunction) कहा जा रहा है। 21 दिसंबर को ग्रहों के एक सीध में आने को क्रिसमस स्‍टार कहा जा रहा है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक शाम के समय दोनों ग्रहों के पास आने को देखा जा सकेगा। यह दुर्लभ खगोलीय घटना अगले दो सप्‍ताह तक देखी जा सकेगी। दरअसल, बृहस्पति और शनि ग्रहों इस दिन इतने करीब होंगे कि ये एक ही दिखेंगे। इन दोनों के बीच सिर्फ 0.1 डिग्री की दूरी होगी। खास बात यह है कि 800 सौ साल पहले यह मौका रात के वक्त आया था और इस बार भी इसे रात को देखा जा सकेगा।

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