दिल्लीवाली गाली पड़ेगी भारी, लड़की की शिकायत पर कोर्ट का अहम फैसला

नई दिल्ली
महिलाओं के खिलाफ सेक्सिस्ट टिप्पणी अब भारी पड़ने वाली है। दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि ऐसा करने पर आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा के तहत यौन उत्पीड़न का चार्ज लगेगा। दरअसल, एक शख्स ने उसके खिलाफ लगे यौन उत्पीड़न के आरोप के खिलाफ एक मजिस्ट्रेट कोर्ट में अपील की थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।

महिला की शिकायत पर कोर्ट सुनवाई को तैयार
फरवरी में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एक पुलिस केस की सुनवाई को तैयार हुई थी जिसमें एक महिला ने जनवरी 2016 में अपने मैनेजर के खिलाफ ऐसे हिंदी शब्द का इस्तेमाल का आरोप लगाया था जिसका इस्तेमाल गाली के तौर पर होता है। पुरुष ने इस केस को सेशन कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन कोर्ट तमाम दलीलों के बाद भी महिला की शिकायत सुनने को तैयार हो गया।

सेशन जज ने की अहम टिप्पणी
अतिरिक्त सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने कहा, ‘चार्ज फ्रेम करने के वक्त कोर्ट शिकायतकर्ता के बयान को अलग नहीं कर सकती, जहां उसे आरोपी के खिलाफ खास आरोप लगाया है।’ उन्होंने कहा कि अगर शिकायतकर्ता ने घटना की तारीख और तय समय का जिक्र नहीं कर पाई तो इसका ये मतलब नहीं हुआ कि उसकी शिकायत को बिना जांच-परख के खारिज कर दिया जाए।

महिला ने अपने मैनेजर पर लगाया है आरोप
महिला ने अपने आरोप में कहा था कि घटना पिछले महीने हुई थी और उसके मैनेजर ने उसकी डेस्क पर बैठकर उसे गाली दी थी। जब उसने अपने रिपोर्टिंग मैनेजर के ध्यान में इसे लाया तो उन्होंने कहा कि अगर वह इस कंपनी में काम करना चाहती हैं तो इसे इग्नोर करे।

आरोपी का वकील बोला- सब झूठ है
शख्स के वकील ने सेशन कोर्ट से अपील की कि मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को रद्द किया जाए। वकील ने तर्क दिए कि महिला ने कंपनी में यह शिकायत नहीं कि बल्कि उसके मुवक्किल के खिलाफ झूठा मुकदमा किया। वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता ने कोर्ट के सामने क्रिमिनल प्रोसिजर के सेक्शन 164 के तहत बयान दर्ज नहीं कराया। शख्स के वकील ने दलील दी कि जब महिला को उसके प्रोफेशनल अक्षमता के कारण कंपनी से इस्तीफा देने को कहा गया तो उसने अपने सेल्स मैनेजर के ऊपर केस दर्ज करा दिया।

कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट शिवराज सिंह अहलावत बनाम यूपी राज्य का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी पर लगे आरोप की समीक्षा होगी लेकिन यह उनके सजा का आधार नहीं होगा। जज राणा ने ने कहा, ‘कानून में यह बात निहित है कि आरोप के वक्त कोर्ट को तुरंत सबूत की जरूरत नहीं होती है। अगर शिकायतकर्ता के बयान में कुछ त्रुटियां है तो यह ट्रायल के दौरान देखा जाएगा।’

कोर्ट ने बताया, इसलिए की सुनवाई
जज ने कहा कि महिला का कोर्ट में बयान दर्ज नहीं कराया जाना उसकी शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट की नजर में ट्रायल कोर्ट में तभी बयान दर्ज करने की जरूरत होती है जब अदालत को लगता है कि आरोपी को बरी किया जा सकता है। हालांकि, जब कोर्ट ने प्रथम दृष्टया इसे केस मान लिया तो यह दलील नहीं मानी जा सकती है।

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