कोविड-19 के टीकाकरण अभियान में वैक्सीन में इस्तेमाल हुई एक चीज बड़ी रुकावट बन सकती है। टीका बनाने में पोर्क जलेटिन के यूज की बात उठने के बाद कुछ समुदायों के बीच इसे लेकर बहस छिड़ गई है। इससे टीकाकरण अभियान पर असर पड़ सकता है। एसोसिएटेड प्रेस से बातचीत में, ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल असोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि ‘ऑर्थोडॉक्स’ यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है। ये सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं। पोर्क जलेटिन क्या है और वैक्सीन बनाने में उसका किस तरह इस्तेमाल होता है, कोविड वैक्सीन को लेकर धार्मिक नजरिये से क्या डिवेलपमेंट्स हैं, आइए जानते हैं।
Pork Gelatine in Corona Vaccine: स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन के दौरान कोविड-19 वैक्सीन सेफ और असरदार बनी रहे, इसके लिए उसमें सुअर के मांस (पोर्क) से बने जलेटिन का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। इसपर कुछ धर्मगुरुओं ने आपत्ति जताई है।
कोविड-19 के टीकाकरण अभियान में वैक्सीन में इस्तेमाल हुई एक चीज बड़ी रुकावट बन सकती है। टीका बनाने में पोर्क जलेटिन के यूज की बात उठने के बाद कुछ समुदायों के बीच इसे लेकर बहस छिड़ गई है। इससे टीकाकरण अभियान पर असर पड़ सकता है। एसोसिएटेड प्रेस से बातचीत में, ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल असोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि ‘ऑर्थोडॉक्स’ यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है। ये सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं। पोर्क जलेटिन क्या है और वैक्सीन बनाने में उसका किस तरह इस्तेमाल होता है, कोविड वैक्सीन को लेकर धार्मिक नजरिये से क्या डिवेलपमेंट्स हैं, आइए जानते हैं।
कोरोना वैक्सीन में इस्तेमाल पर विवाद कब शुरू हुआ?
टीकों में पोर्क जलेटिन का इस्तेमाल नया नहीं है। वैक्सीन और पोर्क जलेटिन को लेकर विवाद की शुरुआत हुई इंडोनेशिया से। वहां के मुस्लिम समुदाय के बीच यह बात तेजी से फैली कि वैक्सीन में सुअर का मांस इस्तेमाल हुआ है और यह ‘हराम’ है। धीरे-धीरे दुनिया की बड़ी मुस्लिम आबादी के बीच इसपर चर्चा शुरू हो गई। जिसके बाद धर्मगुरुओं को आगे आकर बयान जारी करने पड़े हैं। इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।
पोर्क जलेटिन: पहले भी हो चुका विवाद
वैक्सीन में पोर्क जलेटिन के इस्तेमाल को लेकर विवाद नया नहीं है। सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया में ही 2018 में उलेमा काउंसिल ने चेचक और रुबेला के टीकों में जलेटिन की मौजूदगी बताकर उन्हें ‘हराम’ करार दिया था। इसके बाद धर्मगुरुओं ने बच्चों से ये टीके न लगावाने की अपील शुरू कर दी थी। हालांकि बाद में काउंसिल ने टीका लगवाने की छूट दे दी मगर इससे शुरुआत में बने माहौल के चलते बड़ी संख्या में बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गए।
दुनियाभर की कंपनियों ने क्या कहा?
एपी के मुताबिक, Pfizer, Moderna, और AstraZeneca के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके COVID-19 टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं।
पोर्क जलेटिन क्या है? टीकों में क्यों होता है इस्तेमाल?
जलेटिन ऐसी चीज है जो जानवरों की चर्बी से मिलता है। सुअरों की चर्बी से मिलने वाले जलेटिन को पोर्कीन जलेटिन या ‘पोर्क जलेटिन’ कहते हैं। दवाएं बनाने में जलेटिन का इस्तेमाल कई तरह से होता है। वैक्सीन में इसका इस्तेमाल एक स्टेबलाइजर की तरह करते हैं। यानी पोर्क जलेटिन यह सुनिश्चित करता है कि वैक्सीन स्टोरेज के दौरान सुरक्षित और असरदार बरकरार रहे। वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां कई तरह के स्टेबलाइजर्स पर टेस्ट करती हैं जो मुफीद होता है, उसका इस्तेमाल करती हैं। वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाला जिलेटिन बेहद प्यूरिफाइड होता है। इसे पेप्टाइड्स में तोड़कर इस्तेमाल करते हैं।
बिना पोर्क जलेटिन के बन सकती है वैक्सीन?
यूके की नैशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक, अलग स्टेबलाइजर संग वैक्सीन डिवेलप करने में फिर से सालों लग सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि वैक्सीन बन ही ना पाए। कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी ‘Novartis’ ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने का प्रयास कर रही है।
वैक्सीन में पोर्क जलेटिन: मुस्लिम समुदाय क्या करे?
संयुक्त अरब अमीरात की फतवा काउंसिल ने कहा है अगर वैक्सीन में जलेटिन मौजूद हो तो भी मुसलमान उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। काउंसिल के चेयरमैन शेख अब्दुल्ला बिन वय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो वैक्सीन को लेकर इस्लाम में सुअर को लेकर लगाए गए प्रतिबंध लागू नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वैक्सीन के मामले में पोर्क जिलेटिन दवा की कैटेगरी में आता है, ना कि खाने की। वहीं, सिडनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद कहते हैं कि आम सहमति यह बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत स्वीकार्य है, क्योंकि यदि टीकों का उपयोग नहीं किया गया तो ‘बहुत नुकसान’ होगा।
‘यहूदी भी ले सकते हैं वैक्सीन’
इजराइल की रब्बानी संगठन ‘जोहर’ के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव ने कहा, ‘यहूदी कानूनों के अनुसार सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल करना तभी जायज है जब इसके बिना काम न चले।’ उन्होंने कहा कि अगर इसे इंजेक्शन के तौर पर लिया जाए और खाया नहीं जाए तो यह जायज है और इससे कोई दिक्कत नहीं है। बीमारी की हालत में इसका इस्तेमाल विशेष रूप से जायज है।