पीएम मोदी ने 'मन की बात' में की झारखंड के हीरामन के इस कदम की तारीफ, जानिए क्या है मामला

रवि सिन्हा, रांची
प्रधानमंत्री () ने साल 2020 के अपने अंतिम ‘मन की बात’ कार्यक्रम (Man Ki Baat Programme) में आदिम जनजाति कोरवा भाषा के संरक्षण (Korwa Language Dictionary) की कोशिश की सराहना की। उन्होंने इसके लिए झारखंड के गढ़वा में रहने वाले हीरामन कोरवा के एक दशक से अधिक समय से किए जा रहे प्रयास की प्रशंसा की। हीरामन कोरवा ने कोरवा भाषा शब्दकोश को लिपिबद्ध (Korwa Language) किया है। जिससे एक विलुप्त होती भाषा को भविष्य में भी संरक्षित रखा जा सके।

पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में क्या कहा…
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरवा जनजाति की आबादी केवल 6000 है, जो शहरों से दूर पहाड़ियों और जंगलों में रहती है। हीरामन जी ने अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने का काम किया है। 12 साल के अथक प्रयास के बाद उन्होंने कोरवा भाषा का एक शब्दकोष बनाया है, जो विलुप्त हो रही भाषा को संरक्षित करने के लिए सराहनीय है। हीरामनजी ने कोरवा समुदाय के लिए जो किया, वह देश के लिए एक उदाहरण है।

विलुप्त हो रहे आदिम जनजाति कोरवा भाषा के संरक्षण की सराहनाइस काम को अंजाम देने वाले हीरामन कोरवा का कहना है कि भाषा वह साधन है, जिसके जरिए सभी अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। इसके लिए लोग वाचिक ध्वनियों का इस्तेमाल करते हैं और यह अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। सभी प्रमुख भाषा का विकास निरंतर चल रहा है। इस दौरान कई आदिम जनजातियां अपने अस्तित्व को बचाने के संकट से ही जूझ रही हैं, ऐसे में भाषा को बचाए रखना और बड़ी चुनौती है। इन्हीं में से ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार की एक आदिम जनजाति कोरवा भी है।

हीरामन ने 12 साल के परिश्रम से कोरवा भाषा शब्दकोश को किया लिपिबद्धझारखंड के कई हिस्सों में कोरवा आदिम जनजाति की आबादी निवास करती है, लेकिन इनकी संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। अपनी भाषा को संरक्षित करने के लिए गढ़वा के सुदूरवर्ती सिंजो गांव निवासी हीरामन कोरवा ने 12 साल के परिश्रम से कोरवा भाषा शब्दकोश को लिपिबद्ध किया है। जिससे एक विलुप्त होती भाषा को भविष्य में भी संरक्षित रखा जा सके। 50 पन्नों के इस शब्दकोष में पशु-पक्षियों से लेकर सब्जी, रंग, दिन, महीना, घर गृहस्थी से जुड़े शब्द, खाद्य पदार्थ, अनाज, पोशाक, फल सहित अन्य कोरवा भाषा के शब्द और उनके अर्थ शामिल किए गए हैं।

पेशे से पारा शिक्षक हैं हीरामनपेशे से पारा शिक्षक हीरामन बताते हैं कि समय के साथ समाज के लोग कोरवा भाषा को भूलने लगे हैं जो बात उन्हें बचपन से ही कचोटती थी। जब उन्होंने होश संभाला तभी से उन्होंने कोरवा भाषाओं को एक डायरी में लिपिबद्ध करने का काम शुरू कर दिया था। आर्थिक तंगी के कारण 12 साल तक यह शब्दकोश डायरियों में सिमटे रहे। फिर आदिम जनजाति कल्याण केंद्र गढ़वा और पलामू के मल्टी आर्ट एसोसिएशन के सहयोग से कोरवा भाषा शब्दकोश छप सका।

हीरामन कोरवा के इस कदम से क्या होगा असरभाषा के जानकार और विशेषज्ञों के अनुसार देश में फिलहाल तकरीबन 8.2 फीसदी जनजातीय आबादी है। सभी के पास समृद्ध संस्कृति और भाषाएं हैं, वहीं झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं। उनमें से नौ जनजातियां कोरवा सहित अन्य आदिम जनजाति वर्ग में आती हैं। यह आदिम जनजाति मुख्य रूप से पलामू प्रमंडल के रंका, धुरकी, भंडरिया, चैनपुर, महुआटांड़ सहित अन्य प्रखंडों में निवास करती है। इसमें कोई संदेह नहीं की हीरामन की लिखित कोरवा भाषा शब्दकोष इसे संरक्षित और समृद्ध करने में मील का पत्थर साबित होगी। यह जनजातीय समुदाय की अस्मिता और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मददगार साबित होगी।

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