यह सही है कि शिक्षा और रोजगार को अलग करके नहीं देखा जा सकता लेकिन व्यवहार में अक्सर इनमें समन्वय का अभाव दिखता है। देश में हर साल एक करोड़ युवा ग्रैजुएट बनकर जॉब मार्केट के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि उनमें से ज्यादातर संख्या उनकी है जो बाजार की मांग के अनुरूप फिट नहीं बैठते।