सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को एक बार में तीन तलाक देने मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि तीन तलाक देने वाले पति के रिश्तेदार को आरोपी नहीं माना जा सकता क्योंकि पति ने तीन तलाक देकर अपराध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित महिला की सास को अग्रिम जमानत देते हुए उक्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि तीन तलाक मामले में अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचुड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि पति के रिश्तेदारों को तीन तलाक विरोधी कानून यानी मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में अहम व्यवस्था देते हुए तीन तलाक देने के आरोपी पति की माँ यानी पीड़ित की सास को अग्रिम जमानत दी और कहा कि जो पहली नज़र का आंकलन है उससे ये स्पष्ट है कि पीड़िता की सास है याचिकाकर्ता महिला जो तलाक देने वाले पति की मां हैं। इस एक्ट के तहत मुस्लिम पुरुष ने अपराध किया है और ऐसे में उसकी माँ को आरोपी नही ठहराया जा सकता है।
तीन तलाक के दोषी को कितनी सजा?
जस्टिस चंद्रचूड की बेंच ने कहा कि मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट की धारा 3 में मुस्लिम पुरुष एक बार मे तीन तलाक लेना अपराध है। धारा 4 में कहा गया है कि तीन तलाक देने के दोषी पति को तीन साल तक कैद की सजा हो सकती है। मौजूदा मामले में पीड़ित महिला के पति की माँ को आरोपी बनाया गया है। उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना और मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है।
‘जमानत से पहले शिकायत करने वाली महिला को भी सुनें’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को उसके पति ने तलाक दिया है और वो एक बार मे तीन तलाक देने का आरोपी है न कि उसकी मां इसके लिए जिम्मेदार है। अदालत ने पति की मां को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि इस मामले में अगर जमानत पर कोई रोक नही है लेकिन संबंधित अदालत जमानत का आर्डर करने से पहले शिकायत करने वाली महिला को भी सुने। अग्रिम जमानत का आदेश अदालत के विवेक पर निर्भर है। केरल हाई कोर्ट से राहत नही मिलने पर याची सास ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।