पिता को मुखाग्नि देकर आंदोलन में लौटा बेटा…किसानों के हौसले की 5 कहानियां

गाजियाबाद
कृषि कानून के विरोध में यूपी गेट बॉर्डर पर हजारों किसान डटे हैं। मांगें पूरी होने तक वे यहां से हिलने को भी तैयार नहीं हैं। आंधी हो, तूफान हो या बारिश का पानी…या फिर आंखों का पानी, कोई भी उन्हें टस से मस नहीं कर पा रहा है। आंदोलन में बैठे मोनू को ही देखिए। एक तारीख को आंदोलनस्थल पर पिता को खो दिया। पिता की चिता को अग्नि देने के बाद वह दोबारा आंदोलन में वापस आ गया है।

आंसू रुके भी नहीं हैं और पिता की चिता की आग भी पूरी तरह ठंडी नहीं हुई है, लेकिन इस नौजवान ने कलेजे में पापा की एक बात को लिख लिया है। यही कि हक लिए बिना घर न लौटना। पिता का शव लेकर मोनू गांव लौटा। उन्हें मुखाग्नि दी और तुरंत बाद आंदोलन में लौट आया। वहीं, दूसरी ओर रविवार रात और सोमवार को हुई बारिश का पानी भी किसानों को कमजोर नहीं कर पाया है। बिस्तर भीगने से पूरी रात जागकर काटने वाले किसान नई सुबह के इंतजार में फिर आंदोलन में बैठ गए हैं।

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‘पिताजी ने कहा था, हक लेकर ही लौटना’
बागपत से आंदोलन में शामिल हुए किसान गलतान सिंह की एक जनवरी को ठंड से मौत हो गई। उनका बेटा मोनू और अन्य रिश्तेदार भी यहां आए थे। पिता की मौत के बाद मोनू गांव लौटा, लेकिन पिता को मुखाग्नि देकर रविवार को ही आंदोलन में लौट आया। मोनू ने कहा कि पिता ने आंदोलन में जान गंवाई है, जिसकी कोई कीमत नहीं है।

मोनू ने कहा, ‘पिता का अंतिम संस्कार कर आ गया हूं। अब हक लेकर ही लौटूंगा। वहीं, गलतान के बड़े भाई चौधरी आजाद ने बताया कि उनके छोटे भाई की हमेशा से इच्छा थी कि आंदेालन में हम तब तक बने रहें, जब तक हक न ले लें। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार कर अगले ही दिन यहां लौट आए हैं।’

‘भाई की अंत्येष्टि कर वापस आ गया’
दो जनवरी को कश्मीर सिंह ने यहां के शौचालय में आत्महत्या की थी। कश्मीर सिंह के छोटे भाई मंजीत सिंह अंत्येष्टि के बाद गांव से वापस आंदोलनस्थल पर आ गए हैं। उनका कहना है कि बड़े भाई ने यहां सरकार के फैसलों से तंग आकर जान दी, लेकिन अब हम सरकार को मनमानी नहीं करने देंगे। यहां डटकर सामना करेंगे और बैठे रहेंगे।

कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जो आंदोलन की शुरुआत से ही यूपी गेट पर किसानों की सेवा कर रहे हैं। जिनके बच्चे विदेश में रहते हैं, वह भी फोन कर परिवार का मनोबल बढ़ा रहे हैं। इन परिवारों ने आंदोलन को मजबूती दे रखी है। साथ में घर की भी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।

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पत्नी व रिश्तेदारों के साथ टिके हैं आंदोलन में
उत्तराखंड से आए गुरविंदर सिंह ने बताया कि वह आंदोलन के पहले दिन से पत्नी और रिश्तेदारों के साथ यूपी गेट पर लंगर बांट रहे हैं। उनका बेटा ऑस्ट्रेलिया में पढ़ता है। बेटी पढ़ाई के साथ घर और खेती दोनों संभाल रही है। बेटा रोज दिन में चार बार फोन कर कहता है कि जब तक मांग पूरी न हो जाए, आंदोलन से वापस नहीं आना। जरूरत पड़ने पर खुद भी विदेश से आने की बात कहता है। गुरविंदर कहते हैं कि सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो अपने रिश्तेदारों के साथ यहीं लोहड़ी का पर्व मनाएंगे।

लोहड़ी पर गांव से यहीं आएंगे रिश्तेदार
रामपुर से आईं 75 साल की हरभजन कौर कहती हैं कि कितनी भी ठंड और बारिश हो, वह यहां से तब तक नहीं लौटेंगी, जब तक किसानों की मांग पूरी नहीं हो जाती। अपने गांव की ही सहेली के साथ हरभजन कौर मूंगफली खाते हुए कहती हैं कि इस साल परिवार में कई नई शादियां हुई हैं, कुछ को बच्चे भी हुई हैं। ऐसे में यह लोहड़ी बहुत खास है, लेकिन मांग पूरी नहीं होने पर परिवार के लोगों को यूपी गेट पर ही बुलाकर लोहड़ी मनाएंगे।

बिना मांगें मनवाए नहीं लौटेंगे घर
उत्तराखंड के काशीपुर से आईं सुखप्रीत कहती हैं कि उनके लिए तो उसी दिन लोहड़ी होगी, जब हमारी मांगें मानी जाएंगी। ऐसे जब तक मांग पूरी नहीं होगी, कोई भी पर्व वह यूपी गेट पर ही किसान भाइयों संग मनाएंगी। वह आंदोलन में अपने साथ भतीजी मिलनदीप कौर को भी साथ लाई हैं। सुखप्रीत कहती हैं कि बारिश हो या कितना भी कोहरा हो, हम बिना मांगें मनवाए, घर लौटने वाले नहीं हैं।

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