83 साल के सुप्रसिद्ध उद्योगपति अपनी मानवता के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने एक बार फिर से ऐसी ही मानवता की मिसाल पेश की है। अपने कर्मचारियों के लिए वह कई कल्याणकारी योजनाएं भी चलाते हैं। इस बार वह खुद अचानक अपने एक पूर्व कर्मचारी के घर पहुंच गए जो कई दिनों से बीमार था। रतन टाटा मुंबई से पुणे खासतौर पर अपने पूर्व कर्मचारी के हाल जानने के लिए ही पहुंचे थे।
हाल ही में रतन टाटा मुंबई से पुणे पहुंचे। यहां वह सीधे अपने एक पूर्व कर्मचारी के घर पहुंचे। यहां उन्होंने उसका हालचाल लिया। उन्हें पता चला कि यह कर्मचारी दो साल से बीमार है तो वह खुद को रोक नहीं पाए।
पूर्व कर्मचारी हुआ हैरान
रतन टाटा ने अपना यह दौरा पूरी तरह से व्यक्तिगत रखा। किसी मीडियावाले को भी सूचना नहीं दी गई। वह चुपचाप पुणे की सोसायटी में पहुंचे और अपने पूर्व कर्मचारी से मिले। रतन टाटा को देखकर यह कर्मचारी भी हैरान हो गया। उसे अपने आंखों पर यकीन नहीं हुआ।
दोपहर तीन बजे हुए दाखिल
टाटा समूह के सर्वेश्वर रतन टाटा रविवार को दोपहर लगभग 3 बजे कोथरुड में गांधी भवन के पास वुडलैंड सोसायटी में पहुंचे। टाटा बिना भीड़ या सुरक्षा के वहां आए। यहां वह इनामदार के घर पहुंचे और उनसे बातचीत की। रतन टाटा यहां लगभग आधे घंटे तक रुके। उन्होंने इनामदार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की और लौट गए।
सोसायटी वाले भी हुए हैरान
सोसायटी में रहने वाली अंजलि पर्डिकर ने बताया कि रतन टाटा देखने में इतने सहज थे कि उन्हें देखकर बिल्कुल भी नहीं लगा कि वह इतने बड़े उद्योगपति हैं। उनमें जरा भी घमंड नहीं था। सोसायटी में दो टाटा की गाड़ियां दाखिल हुईं। उनमें से एक गाड़ी से वह नीचे उतरे और सीधे लिफ्ट में घुस गए। उन्हें देखकर लगा कि वह रतन टाटा हैं। बाद में जब अंजलि ने कर्मचारियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि हां वह रतन टाटा ही हैं।
सोसायटी के अध्यक्ष और उनकी बेटी से की बात, दिया ज्ञान
सोसायटी के अध्यक्ष अभिजीत माकाशीर ने कहा कि टाटा का उनकी सोसायटी में आना हमेशा याद रहेगा। जब रतन टाटा लौट रहे थे तो अभिजीत माकाशीर और उनकी बेटी आदिश्री ने उनके साथ पार्किंग में बातचीत की। उन्होंने बताया, ‘टाटा की अप्रत्याशित यात्रा ने हमें ऐसा महसूस कराया कि हम ईश्वर से मिल रहे हैं। उन्होंने बिना किसी संकोच के हमारे साथ बातचीत की। कुछ ही मिनटों की बातचीत में, रतन टाटा ने कहा कि हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, इससे कभी भी विचलित न हों।’