वे हांगकांग की एक प्रमुख डायमंड फर्म के परिवार से जुड़ी हैं। उन्होंने धन और वैभव को बहुत करीब से देखा है। लेकिन उन्हें धन आकर्षित नहीं कर सका। वे तपस्या की आभा से आकर्षित हुईं और अब उन्होंने अपना आगे का पूरा जीवन जैन साध्वियों के रूप में बिताने का फैसला लिया है। ये तीन पीढ़ियों की महिलाएं हैं। जिनमें मां, बेटी और नानी शामिल हैं।
हॉन्गकॉन्ग निवासी परीशी शाह (23) अपनी नानी इंदुबेन शाह (73) और मां हेतलबेन के साथ रामचंद्र समुदाय की साध्वी हितदर्शनीश्रीजी के मार्गदर्शन में दीक्षा लेने के लिए तैयार हैं। उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले के दीसा और धानेरा में रहने वाले परिवार ने उनके दीक्षा ग्रहण समारोह की तैयारी शुरू कर दी है।
साइकॉलजी में की है पढ़ाई
परीशी ने बताया कि उन्होंने हॉन्गकॉन्ग से साइकॉलजी में डिग्री ली है। उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई भ हॉन्गकॉन्ग में ही की, जहां उनके पिता भरत मेहता डायमंड का कारोबार करते हैं। उनका भाई जयनाम यूएस में डाटा साइंस की पढ़ाई कर रहा है।
नानी के साथ प्रवचन सुनने गईं तो हुईं प्रभावित
परीशी ने बताया, ‘मैं भारत आईं तो नानी के साथ डेरासर गई। यहां मैंने प्रवचन सुने। मैं इतना ज्यादा प्रभावित हुई कि मैं रेस्तरां जाना या फिल्में देखना भूल गई। हम लोग लगातार साध्वी के पास प्रवचन सुनने जाने लगे। साध्वियों के बीच समय बिताने के दौरान मुझे कुछ अलग सा एहसास हुआ। मुझे ज्ञान हुआ कि किसी भी व्यक्ति को उसके अंदर ही असली खुशी मिलती है। मैंने साध्वी बने का फैसला लिया।’
हॉन्गकॉन्ग से भारत आईं मां
जब परीशी की मां हेतलबेन को इस फैसले की जानकारी हुई तो वह तत्काल हॉन्गकॉन्ग से मुंबई पहुंची। उन्होंने कहा, ‘मेरी मां और बेटी के फैसला का पता चलते ही मां तत्काल मुंबई आ गई। मैंने सोचा था कि मैं अपने बेटे और बेटी की शादी के बाद साध्वी बन जाऊंगी लेकिन अब मुझे इंतजार नहीं करना है। मैं बेटी के साथ दीक्षा लेने जा रही हूं।’