संत स्वामी परमहंस अद्वैतानंद की समाधि तोड़ने का मामला: पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फैसले से छपरा के लोग क्यों हैं खुश?

अमित गिरी, छपरा
छपरा के संत स्वामी परमहंस अद्वैतानंद () की समाधि को पाकिस्तान (Pakistan) में क्षतिग्रस्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने छपरा () स्थित उनके आश्रम के लोगों को बड़ी राहत दी है। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने क्षतिग्रस्त समाधि स्थल को फिर से सरकारी खर्च पर बनाने का निर्देश दिया है। जिसके बाद छपरा स्थित उनके जन्म स्थान में खुशी की लहर है। आश्रम के पुजारी पुरुषोत्तम जी महाराज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उनके अनुयायी बेहद खुश हैं। दोनों देशों के बीच स्वामी जी के आश्रमों के जरिए एक संबंध कायम है जो काफी मधुर है लेकिन कुछ उपद्रवी तत्व इस संबंध को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

संत स्वामी परमहंस अद्वैतानंद का क्या है छपरा से कनेक्शनछपरा के परमहंस स्वामी अद्वैतानंद का जन्म 1846 में छपरा के दहियावां मोहल्ले में हुआ था। रामनवमी के दिन जन्म के कारण उनका नाम रामयाद भी पड़ा। उनमें शुरू से ही अद्भुत लक्षण थे। वह लोगों की सेवा में काफी आनंद पाते जल्द ही उनसे मिलने और उनके प्रवचन सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आने लगे। इस बीच उनके निजी जीवन में कई मुसीबतें आईं। जन्म के महीनेभर बाद ही बालक की माता का देहांत हो गया। जब वह पांच साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद भी बालक की आस्था और लिखना-पढ़ना कम नहीं हुआ। अकेले रहते हुए ही उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अरबी का ज्ञान पाया।

आध्यात्म की तलाश में 16 साल की उम्र में छोड़ा था घर
परमहंस स्वामी अद्वैतानंद ने लगभग 16 साल की उम्र में घर छोड़कर आध्यात्म की तलाश शुरू कर दी। सबसे पहले वह बिहार से जयपुर पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात 90 साल के संत स्वामी आनंदपुरी से हुई, जिनसे उन्होंने योग और प्राणायाम की शिक्षा ली। इस दौरान परमहंस स्वामी को लोग जानने लगे थे और उनके अनुयायी बढ़ते ही गए। उन्हें अद्वैत मठ का पहला आध्यात्मिक गुरु माना जाने लगा। आज अमेरिका और कनाडा से लेकर गल्फ देशों में भी स्वामी अद्वैतानंद के लगभग 300 आश्रम हैं, जहां हजारों अनुयायी संन्यास और प्राणायाम सीखते हैं।

भारत विभाजन के बाद से उनकी समाधि पर विवाद
संन्यास का प्रचार-प्रसार करते हुए स्वामी जी देशभर में घूम रहे थे। इसी दौरान वह टेरी इलाके में पहुंचे। ये देश विभाजन से पहले की बात है जब टेरी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था अब पाकिस्तान में है। उन्होंने मृत्यु के बाद अपनी समाधि यहीं बनाने की इच्छा जताई थी। भारत विभाजन के बाद से लगातार इस समाधि पर विवाद होता रहा। कट्टरपंथी समुदाय इस समाधि को जमीन पर जबरन कब्जा मानते हुए अनेकों बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर चुका है।

समाधिस्थल पर तोड़फोड़ को लेकर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसलासाल 1997 में इस समाधिस्थल को पूरी तरह से तोड़फोड़ दिया गया। इसके बाद हिंदुओं की मांग पर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में इसके पुर्ननिर्माण की इजाजत दे दी। वहां के स्थानीय मुस्लिमों का कहना है कि समाधि की जगह उनके लिए घरों का निर्माण होना चाहिए। यहां ये जानना दिलचस्प होगा कि भले ही पाकिस्तानी कोर्ट ने मंदिर और समाधि के दोबारा बनाने की अनुमति दी थी लेकिन साथ ही उनकी शर्त भी थी।

इसके मुताबिक हिंदू कभी भी टेरी में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे। वे केवल जमा होकर प्रार्थना कर सकेंगे। समाधि पर उन्हें न तो बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने की इजाजत होगी और न ही समाधि स्थल पर किसी बड़े निर्माण कार्य की मंजूरी दी जाएगी। इसके अलावा क्षेत्र में हिंदू समुदाय के लोग क्षेत्र में जमीन भी नहीं खरीद सकेंगे और उनका दायरा केवल समाधि स्थल तक ही सीमित रहेगा। 30 दिसंबर को एक बार फिर इस समाधि पर हमला किया गया था लेकिन उसके तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने इस आश्रम के अनुयायियों को राहत दी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *