Farmers Protest: 2 घंटा की बैठक में सिर्फ 1 घंटे चर्चा, ‘जीतेंगे या मरेंगे’ लिखी तख्तियां ले किसान नेता हुए मौन, अब SC पर निगाहें

नई दिल्ली
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक महीने से अधिक समय से जारी आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच आठवें दौर की वार्ता भी शुक्रवार को समाप्त हो गई। इस बार की बैठक में भी नतीजा सिफर रहा। सरकार ने कानूनों को निरस्त करने की मांग खारिज कर दी तो किसानों ने कहा कि उनकी लड़ाई आखिरी सांस तक जारी रहेगी और ‘घर वापसी’ तभी होगी जब इन कानूनों को वापस लिया जाएगा। अब अगली बैठक 15 जनवरी को होगी।

संकेत साफ है कि 11 जनवरी को किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर एक साथ निर्धारित सुनवाई के बाद ही वार्ता का अगला रुख स्पष्ट होगा। इस बीच किसानों के संगठनों ने अगली रणनीति के लिए 11 जनवरी को बैठक बुलाई है। हालांकि कई किसान नेताओं ने कहा कि उन्हें अगली बैठक में भी कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है।

सिर्फ 1 घंटे ही हो सकी चर्चा
विज्ञान भवन में हुई बैठक सिर्फ दो घंटे चली और इसमें भी चर्चा सिर्फ एक घंटे ही हो सकी। इसके बाद किसान नेताओं ने हाथों में ‘जीतेंगे या मरेंगे’ लिखी तख्तियां लेकर मौन धारण कर लिया। किसान नेताओं ने दोपहर के भोजन के लिए ब्रेक भी नहीं लिया तो उधर वार्ता में शामिल तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए चले गए।

अगली वार्ता में समाधान निकलने की उम्मीद: तोमर
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि वार्ता के दौरान किसान संगठनों द्वारा तीनों कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग के अतिरिक्त कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किए जाने के कारण कोई फैसला नहीं हो सका। बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में तोमर ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि अगली वार्ता में किसान संगठन के प्रतिनिधि वार्ता में कोई विकल्प लेकर आएंगे और कोई समाधान निकलेगा।

तो फिर लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनाएंगे: किसान
वहीं किसान नेताओं ने हालांकि जोर दिया कि कानूनों को निरस्त करने से कम पर वह पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे फसलों के त्योहार लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर कड़ाके की इस ठंड में भी आंदोलन कर रहे किसान पूर्व की योजना के मुताबिक 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालेंगे।

सौहार्दपूर्ण वातारण में नहीं हुई बैठक, संवाद रहा तीखा: किसान नेता
किसान नेताओं ने कहा कि इस बार की बैठक सौहार्दपूर्ण वातारण में नहीं हुई और संवाद कुछ तीखा रहा। बैठक के बाद किसानों की संवेदनाएं भी झलकीं जब ‘जय ’ की नेता रवीन्दर कौर की आंखों में आंसू छलक पड़े। उनका कहना था कि कई माताओं ने अपने पुत्र और कई बेटियों ने अपने पिता खो दिया लेकिन इसके बावजूद भी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है।

अगली वार्ता में कोई नतीजा निकलेगा, इसकी संभावना भी नहीं: जोगिंदर
बैठक के बाद किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि बैठक बेनतीजा रही और अगली वार्ता में कोई नतीजा निकलेगा, इसकी संभावना भी नहीं है। उन्होंने कहा, “हम तीनों कानूनों को निरस्त करने के अलावा कुछ और नहीं चाहते।” उन्होंने कहा, “सरकार हमारी ताकत की परीक्षा ले रही है लेकिन हम झुकने वाले नहीं हैं। ऐसा लगता है कि हमें लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनानी पड़ेगी।” एक अन्य किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा कि किसान जीवन के अंतिम क्षण तक लड़ने को तैयार है। उन्होंने अदालत का रुख करने के विकल्प को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि किसान संगठन 11 जनवरी को आपस में बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी को किसानों के मुद्दे पर सुनवाई
कुछ किसान नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार की तरफ से किसानों को सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में पक्षकार बनने को कहा गया। हालांकि तोमर ने इससे इनकार किया। उन्होंने कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी को इस मामले की सुनवाई होनी है, इसलिए यह मामला जरूर सामने आया। उन्होंने कहा, “हम लोकतांत्रिक देश हैं। जब कोई कानून बनता है तो सुप्रीम कोर्ट को इसकी समीक्षा करने का अधिकार है। हर कोई शीर्ष अदालत के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

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किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता SC
सूत्रों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए अगली वार्ता तय की गई है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है। बैठक के दौरान प्रमुख किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के कई फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि कृषि राज्य का विषय है लेकिन किसान संगठन अदालत का रुख करना नहीं चाहते।

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