आसान नहीं बिकरू गांव में लोकतंत्र की बहाली..प्रधानी के दावेदारों के बीच जमकर चले लाठी-डंडे

सुमित शर्मा, कानपुर
कुख्यात अपराधी की मौत के बाद कानपुर के बिकरू गांव में ग्राम प्रधान का चुनाव और भी दिलचस्प हो गया है। बिकरू गांव में पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रधान पद के दावेदार खुलकर सामने आ रहे हैं। शुक्रवार को प्रधानी की दावेदारी करने वालों की बीच जमकर लाठी-डंडे चले जिसमें कई लोगों के चोटें आई हैं। गांव में शांतिपूर्ण ढंग से लोकतंत्र की बहाली करना प्रशासन के लिए भी चुनौतीपूर्ण काम है। गैंगस्टर विकास दुबे ने अपनी आलीशान कोठी से 25 साल तक यहां लोकतंत्र को बंधक बनाकर रखा था।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने पिछले साल 2 जुलाई की रात अपने गुर्गों के साथ मिलकर सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। यूपी एसटीएफ और कानपुर पुलिस ने मिलकर जवाबी कार्रवाई करते हुए विकास दुबे समेत उसके छह साथियों को एनकांउटर में मार गिराया था। के बाद ग्रामीणों ने श्रीमद्भागवत कथा और भंडारे का आयोजन कराया था।

दावेदारों के बीच चले लाठी-डंडे
शुक्रवार को भागवत कथा का समापन हुआ था। बिकरू गांव से प्रधान पद के सभी दावेदार भागवत कथा का श्रेय लेना चाहते थे। भंडारे में प्रसाद वितरण के दौरान पूर्व प्रधान अमर यादव और विकास दुबे से बगावत करने वाले अनुराग दुबे के समथकों के बीच कहासुनी हो गई। देखते ही देखते दोनों पक्षों में लाठी-डंडे चलने लगे। भागवत कथा का पंडाल युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया। गांव में भगदड़ मच गई। इस मारपीट में आधा दर्जन लोग घायल हुए है। पूरे गांव में दहशत का माहौल बना हुआ है। किसी भी पक्ष ने पुलिस से शिकायत नहीं की है।

आलीशान कोठी से चलती थी प्रधानी
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने 25 साल तक लोकतंत्र को अपनी कोठी की चौखट से बांधकर रखा था। बिकरू गांव में प्रधानों के चेहरे जरूर बदलते रहे, लेकिन प्रधानी की बागडोर विकास के हाथ में रही। 2006 और 2015 में विकास दुबे के भाई दीपक दुबे की पत्नी अंजली दुबे निर्विरोध ग्राम प्रधान चुनी गई। पूरे गांव में दूसरे किसी प्रत्याशी ने नामांकन भी नहीं कराया था। इसके साथ ही विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुई। विकास अपनी हनक से बिकरू गांव के आसपास के दर्जनों गांवों में अपने खास लोगों को प्रधान बनवाता था।

25 वर्षो में सिर्फ चेहरे बदले, मगर कमान विकास के हाथ में रही
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का जैसे-जैसे कद बढ़ता गया, उसकी जड़ें मजबूत होती चली गईं। विकास जिसको चाहता था, उसको ग्राम प्रधान बनाता था। 1995 में विकास दुबे पहली बार ग्राम प्रधान चुना गया था। चुनाव जीतने के बाद लोकतंत्र की चाभी उसके हाथ लग गई। 2000 में अनुसूचित जाति की सीट होने पर विकास ने गांव की गायत्री देवी को प्रत्याशी बनाया था। गायत्री देवी चुनाव जीत कर प्रधान बन गई। 2005 में जनरल सीट होने पर विकास के छोटे भाई दीपक की पत्नी अंजली को निर्विरोध प्रधान चुना गया। 2010 में बैकवर्ड सीट होने पर विकास ने रजनी कुशवाहा को मैदान में उतारा था। रजनी कुशवाहा ग्राम प्रधान चुनी गई। 2015 में अंजली दुबे दोबारा निर्विरोध ग्राम प्रधान चुनी गई थी। प्रधान कोई भी बने, लेकिन उस पर नियंत्रण विकास का ही रहता था।

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