इंडोनेशिया ने 'हलाल' चीनी कोरोना वैक्सीन को दी मंजूरी, सबसे पहले राष्ट्रपति लगवाएंगे टीका

जकार्ता
इंडोनेशिया ने सर्वोच्च इस्लामी धार्मिक संस्था के चीनी कोरोना वायरस वैक्सीन को हलाल घोषित किए जाने के बाद अपनी मंजूरी दे दी है। चीन की कोरोना वैक्सीन कोरोनावेक को सिनोवेक बॉयोटेक लिमिटेड ने बनाया है। इंडोनेशियाई सरकार से आपातकालीन मंजूरी मिलने के बाद दुनिया के सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इस देश में जल्द ही वैक्सीनेशन का काम शुरू हो सकता है। इस वैक्सीन की पहली डोज राष्ट्रपति को लगाई जाएगी।

राष्ट्रपति को लगेगा वैक्सीन का पहला डोज
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा कि सबसे पहले वह टीके की खुराक लेंगे। विडोडो ने सोशल मीडिया पर कहा किसबसे पहले राष्ट्रपति ही क्यों? मैं अपने आपको प्राथमिकता में नहीं रख रहा बल्कि मैं हर किसी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि टीका हलाल और सुरक्षित है। स्वास्थ्यकर्मियों और अन्य नौकरशाहों को ‘कोरोनावैक’ के टीके की खुराक देने का अभियान इसी सप्ताह शुरू होने की संभावना है।

इंडोनेशिया का दावा- शर्तों को पूरा करने के बाद दी मंजूरी
इंडोनेशिया की खाद्य और औषधि निगरानी एजेंसी के प्रमुख पेन्नी लुकितो ने कहा कि आंकड़ों के आधार पर और विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश के मुताबिक कोरोनावैक ने टीका के इस्तेमाल के लिए अनुमति की शर्तों को पूरा किया है। ब्राजील, तुर्की और इंडोनेशिया के क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़ों की समीक्षा के बाद इंडोनेशिया के अधिकारियों ने टीका के आपात स्थिति में इस्तेमाल को मंजूरी दी है।

इंडोनेशिया में चीनी वैक्सीन हलाल घोषित
इंडोनिशया के शीर्ष इस्लामिक निकाय इंडोनेशियन उलेमा काउंसिल ने पिछले सप्ताह कहा था कि कोविड-19 टीका हलाल है और मुस्लिमों के इस्तेमाल के अनुकूल है। बता दें कि कोरोना वायरस वैक्सीन में पोर्क (सुअर के मांस) के जिलेटिन का इस्तेमाल होने की खबर के बाद दुनियाभर के कई मुस्लिम देशों में बहस छिड़ी हुई है।

वैक्सीन पर मुस्लिम देशों में बवाल क्यों?
वैक्सीन में सामान्य तौर पर पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है और इसी वजह से टीकाकरण को लेकर मुस्लिमों की चिंता बढ़ गई है। इस्लामी कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को हराम माना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, किसी वैक्सीन को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सूअर की हड्डी, चर्बी या चमड़े से बने जेलेटिन का प्रयोग किया जाता है। मुस्लिमों को शक है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने भी अपने उत्पादों में इसका इस्तेमाल किया है।

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