कोरोना ने लील लिया रोजगार, आंदोलनकारी किसान बन रहे जीवन-यापन का सहारा

नई दिल्ली
कोरोना वायरस महामारी के पहले राकेश अरोड़ा इंडिया गेट पर सामान बेचते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद सब बंद हो गया और गुजारा मुश्किल हो गया। अब सिंघू बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन के कारण उन्हें रोजी रोटी चलाने का सहारा मिला है और वह बैज तथा स्टिकर बेचते हैं। पिछले छह हफ्ते से ज्यादा समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं और इस दौरान आसपास के कुछ विक्रेता भी यहां सामान बेचने पहुंच गए हैं।

…तो आंदोलन स्थल का किया रुख
‘आई लव खेती’, ‘आई लव किसान’ और ‘किसान एकता जिंदाबाद’ के बैज और स्टिकर बेचने वाले कई विक्रेता प्रदर्शन स्थल पर आ रहे हैं। लगभग सारे प्रदर्शनकारी बैज लगाते हैं जबकि ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों में स्टिकर लगाए जाते हैं। राकेश अरोड़ा और उनके भतीजे अंबाला से 2,500 रुपये का सामान लेकर यहां पहुंचे और अब तक 700 रुपये के बैज, पोस्टर बेच चुके हैं। अरोड़ा ने कहा, ‘‘मैं इंडिया गेट पर सामान बेचता था। लेकिन लॉकडाउन के बाद धंधा चल नहीं पाया। इसलिए हमने प्रदर्शन स्थल के पास दुकान चलाने का फैसला किया।’’

आमदनी अच्छी नहीं, लेकिन हो जाता है गुजारा
दिल्ली में ओखला के इलेक्ट्रिशियन अमन भी रोजगार नहीं होने के कारण यहां पर बैज और स्टिकर बेचने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आमदनी तो बहुत नहीं होती है लेकिन काम चल जाता है। हर दिन 15-20 लोग बैज-स्टिकर खरीदते हैं।’’ उत्तरप्रदेश के लोनी के रहने वाले मोईन (17) और नदीफ (11) भी इसी तरह का काम कर रहे हैं। एक सप्ताह पहले सिंघू पर दुकान शुरू करने वाले मोईन ने कहा, ‘‘हम हर दिन 500 बैज-स्टिकर लाते हैं। इनमें से 300 तक की बिक्री हो जाती है।’’


में दिखा मौका

पिछले पांच साल से सिंघू बॉर्डर पर बिजली के उपकरणों की दुकान चलाने वाले चंदन कुमार भी अपने दुकान में ‘किसान नहीं तो अन्न नहीं’ के नारे वाले स्टिकर और बैज की बिक्री कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बिजली का काम चल नहीं रहा। मुझे लगा कि किसान आंदोलन के दौरान स्टिकर लेना चाहेंगे। इसलिए मैंने कश्मीरी गेट मार्केट से इसे मंगवाना शुरू किया।’’ पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

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