Bihar News : 10 वर्षों की तपस्या के बाद 'राम' ने लिख डाली हिंदी में रामायण, बचपन में निभाया करते थे मर्यादा पुरुषोत्तम का किरदार

दीनबंधु सिंह, सिवान:
जब मन से कोई काम ठान लिया जाय तो उम्र बाधा नहीं बनती। इसे साबित कर दिखाया है बिहार के सिवान के रहने वाले 78 वर्षीय रामचंद्र सिंह ने। डीएवी कॉलेज से विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर रामचंद्र सिंह को राम नाम की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने लिखने की ठान ली। 10 वर्षों की मेहनत के बाद अब उनकी रचना पूरी हो गयी है। 600 पृष्ठ की हिंदी रामायण का नाम उन्होंने रामचंद्रायन दिया है।

बिहार के सिवान जिले के सरसर गांव के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया ने 78 वर्ष की उम्र में हिंदी में रामायण लिखा है। करीब 10 वर्ष की शब्द साधना के बाद अब उनकी रचना पूरी हो गई है। करीब 600 पृष्ठों में लिखे गए इस रामायण का नाम उन्होंने रामचंद्रायन रखा है। इसे पाठकों तक पहुंचाने के लिए प्रकाशकों की तलाश चल रही है। रामचंद्र जी कहते हैं कि हिंदी में यह पहली रामायण है जो लेखन शैली की आधुनिक विधा में लिखी गई है।

मूल रामायण संस्कृत में, बाद में तुलसीदास ने अवधि में लिखा

प्रोफेसर साहब का कहना है कि मूल रामायण संस्कृत में है। इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि थे। वाल्मीकि स्वयं रामायण के एक पात्र के रूप में थे। इसी रचना को आधार मान कर तुलसीदास ने अवधि भाषा में रामचरित मानस लिखा। लेकिन अब तक हिंदी में इसे नहीं लिखा गया था। रामचंद्रायन हिंदी के सहज शब्दों में लिखी गई है। जिसे हर कोई आसानी से पढ़ कर समझ सकता है।

उन्होंने कहा कि मूल वाल्मीकि रचित रामायण संस्कृत में है। वाल्मीकि जी खुद रामायण के एक पात्र हैं। बाद के दिनों में इसी के आधार पर तुलसीदास ने अवधी में रामचरित मानस लिखा था। लेकिन इसमें मूल रचना से हट कर कई बातें लिखी गई हैं। रामायण को कई बार पढ़ने के बाद महसूस हुआ कि हिंदी में भी रामायण होनी चाहिए।

गांव के रामलीला में राम का निभाते थे किरदारसिवान-गोपालगंज मुख्यमार्ग पर स्थित सरसर गांव में अब भी हर साल रामलीला होती है। इसकी शुरुआत काफी पहले हुई थी। बचपन के दिनों को याद करते हुए प्रोफेसर साहब कहते हैं कि पिता ने रामचंद्र नाम रखा, वहीं रामलीला में लंबे समय तक राम के किरदार को जीने का अवसर मिला। इससे बाल काल से ही राम और रामायण के प्रति लगाव गहराता चला गया।

जेपी यूनिवर्सिटी में थे विज्ञान के प्रोफेसररामचंद्र सिंह सुरसरिया जेपी यूनिवर्सिटी के डीएवी पीजी कॉलेज में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर थे। वर्ष 2006 में वे कॉलेज से रिटायर्ड हुए। इसके बाद उन्होंने अपने विषय रसायन शास्त्र की दो किताबें लिखीं। इसके बाद वर्ष 2010 में उन्होंने हिंदी में रामायण लिखना शुरू किया। जो अब जाकर पूरा हुआ है।

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