​​​​​​​जैविक खेती : लागत में कमी और भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने का जरिया

कोण्डागांव। रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जैविक खेती बेहतर विकल्प है। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता की वजह से लोगों का रूझान जैविक फसलों की ओर बढ़ रहा है। कोंडागांव जिले के विकासखण्ड फरसगांव के ग्राम भण्डारवण्डी निवासी मंगलूराम कोर्राम अपनी 08 एकड़ की भूमि पर पिछले 20 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे अपने खेत में खुद के द्वारा तैयार किये गये जैविक खाद तथा गौमूत्र का उपयोग कर वह धान की विभिन्न प्रजातियों जैसे ‘जीरा फूल, श्रीराम, जवाफूल, सीताचोरी, अरूण एचएमटी‘ की विभिन्न किस्मों का उत्पादन सफलतापूर्वक कर रहे हैं। इसके साथ ही वे ‘कुल्थी, मंडिया एवं कोसरा‘ जैसे मोटे अनाज एवं साग-सब्जी भी उगा रहें है। 
    जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग से उन्हें आत्मा योजना के तहत् 90 हजार का चेक भी प्राप्त हुआ है। मंगलूराम को जैविक खेती के प्रशिक्षण हेतु ‘रिर्सोस पर्सन‘ के रूप में भी आमंत्रित किया जाता है। मंगलूराम गांव के अन्य किसानों को भी जैविक खेती के फायदों के बारे में सलाह देते हैं। इसके साथ ही वह किसानों को खाद, बीज एवं जैविक दवाइयों के उपयोग की जानकारी साझा करते हैं। मंगलूराम ने बताया कि उनके छोटे भाई का रूझान जैविक खेती के प्रति शुरू से ही था, इसके लिए उनके भाई ने हैदराबाद स्थित प्रशिक्षण संस्थान से जैविक खेती के संबंध में प्रशिक्षण लिया और केंचुआ खाद बनाने की तकनीक सीखी। वे मानते हैं कि जैविक खेती से न केवल भूमि की उपजाऊ क्षमता और सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है, बल्कि रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में भी कमी आती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *