सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र के बीच बढ़ी तनातनी! कहा-आप हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं

नई दिल्ली : केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तनातनी की स्थिति दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। यह कोई पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र के बीच टकराव की स्थिति निर्मित हुई हो। बार-बार आदेश के बाद भी ट्राइब्यूनल की वैकेंसी न भरे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया है कि ट्राइब्यूनल को बंद कर दें। साथ ही कहा है कि आपने ट्राइब्यूनल को प्रभावहीन बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से ऐसी टिप्पणी पहली बार नहीं है साथ कई ऐसे मामले भी सामने आए जब सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच टकराव देखने को मिला। देश में न्यायिक सक्रियता की बात लंबे समय से होती है। कई मुद्दों पर न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों के बीच बनी सीमारेखा का उल्लंघन होने की चर्चा होती है। केंद्र समेत राज्य सरकारें अदालतों पर कार्यपालिका के कामकाज में दखल का आरोप लगाती रही हैं तो अदालतें इस बात पर नाराजगी जाहिर करती रहती हैं कि कार्यपालिका अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभा रही है। ट्राइब्यूनल का मामला हो या कॉलेजियम का, कोरोना और पूर्व में मनमोहन सरकार के दौरान सीबीआई का मसला।

ट्राइब्यूनल्स में खाली पड़े पदों को भरने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर नाराजगी जाहिर की है। ट्राइब्यूनल्स रिफॉमर््स एक्ट, 2021 पारित कराने पर भी अदालत ने केंद्र को फटकार लगाई। सोमवार को बेहद तल्ख लहजे में कोर्ट ने कहा किउसके फैसले का कोई सम्मान नहीं है, यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता जो उसके फैसले का विरोधाभासी हो। देशभर के ट्राइब्यूनल की वैकेंसी भरने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई और केंद्र सरकार से कहा है कि आप हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि आपने ट्राइब्यूनल को प्रभावहीन बना दिया है, बार-बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ट्राइब्यूनल की वैकेंसी न भरे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कि हमारे पर एक आॅप्शन है कि ट्राइब्यूनल को बंद कर दें।

इसी साल अप्रैल महीने में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह तर्क संगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वह उसके कॉलेजियम की तरफ से जजों कीकहा कि वह तर्क संगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वह उसके कॉलेजियम की तरफ से जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफारिशों पर कार्रवाई कर सकता है। सरकार ने कहा कि वह मेमोरेंडम आॅफ प्रोसीजर (एमओपी) में तय समयसीमा का पालन करेगी। सरकार ने नामों को मंजूरी देने में देरी के लिए सिफारिशें समय पर नहीं भेजने के मामले में हाई कोर्टों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इनमें से कई ने मौजूदा रिक्त पदों के बारे में में पिछले पांच साल में नाम नहीं भेजे हैं। शीर्ष अदालत ने पूछा कि कॉलेजियम ने 10 नामों की सिफारिश की थी जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं और इन नामों को कब तक मंजूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है? अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इन 10 नामों पर तीन महीने के अंदर फैसला करेगी। हालांकि बाद में इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से केंद्र की तारीफ भी की जाती है।

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