भारतीय साहित्य: विकास और प्रभाव पर मैट्स यूनिवर्सिटी में कंसोर्टियम संपन्न


रायपुर. मैट्स यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग में शनिवार 29-जनवरी को ‘इंटरनेशनल मैट्स फोरम फॉर प्रमोशन ऑफ लैंग्वेजेज, लिटरेचर एंड मीडिया स्टडीज’ (IMFPLMS) के तहत “भारतीय साहित्य: विकास और प्रभाव” विषय पर एक राष्ट्रीय साहित्यिक संघ का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर डॉ के.पी. यादव, कुलपति, मैट्स विश्वविद्यालय तथा मुख्य अतिथि प्रो-वीसी प्रो (डॉ.) दीपिका ढांड रही । कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रोफेसर कल्पना पॉल, डीबी गर्ल्स पीजी कॉलेज रायपुर रही वहीँ विशेष वक्ता के रूप में शासकीय कला और वाणिज्य कॉलेज, अहवा, गुजरात से डॉ. मस्के सिद्धार्थ श्रीहरि, सहायक प्राध्यापक तथा आईआईटी गांधीनगर, गुजरात डॉ. डॉ प्रशांत इंगोले रहें । इस कार्यक्रम में आयोजन समिति के सदस्य विभागाध्यक्ष सौरभ शुक्ला, दर्शिका चौधरी, डॉ रंजना दास सरखेल, डॉ संतोष कुमार और दीपनविता डे सहित 80 से अधिक विद्वानों और छात्रों ने चर्चा में भाग लिया।
इस कार्यक्रम में डॉ. दीपिका ढांड ने वैश्विक भाषा के रूप में अंग्रेजी के महत्व पर अपनी बहुमूल्य अंतर्दृष्टि के साथ सत्र का उद्घाटन किया और कहा कि दुनिया भर में अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के विकास में उपनिवेशवाद का प्रभाव महत्वपूर्ण रहा। वीसी प्रोफेसर के.पी. यादव ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। वहीं डॉ. यादव ने छत्तीसगढ़ में हाल ही में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रचार और स्थापना की सराहना की। उन्होंने अपनी भाषाई विविधता और सांस्कृतिक बहुलता के कारण भारतीय साहित्य की विभिन्न जटिलताओं पर जोर दिया। उन्होंने भारतीय क्षेत्रीय साहित्य के विकास के लिए विशेष केंद्रों के विकास का भी सुझाव दिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, प्रो. कल्पना पॉल ने औपनिवेशिक काल से लेकर आज तक अंग्रेजी में भारतीय लेखन के विकास की रूपरेखा के बारे में बात की। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को समकालीन लेखकों जैसे सलमान रुश्दी, अरुंधति रॉय और कई अन्य लेखकों के कार्यों को महत्वपूर्ण स्तंभ माना । डॉ. पॉल ने भारतीय अंग्रेजी साहित्य की सीमाओं को भी स्वीकार किया, विशेष रूप से स्वदेशी स्थानीय साहित्य के हाशिए पर जाने की कीमत पर इसके विकास को।
डॉ. मस्के सिद्धार्थ श्रीहरि ने महाराष्ट्र में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्भव का विश्लेषण किया और इन स्थानिक संरचनाओं ने महिलाओं और दलितों के उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार में कैसे योगदान दिया इस पर बात की साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में उत्पीड़ित आवाज़ों को आवाज़ देने और लिंग और जातिगत भेदभाव के खिलाफ चुप्पी तोड़ने में सीमांत साहित्य की भूमिका की विवेचना की। कार्यक्रम के समापन सत्र में डॉ. प्रशांत इंगोले ने अनुवाद अध्ययन, तुलनात्मक साहित्य, सिनेमा और मीडिया अध्ययन के बढ़ते क्षेत्रों पर बात किया और कहा कि सिनेमा के विकास से मौखिक साहित्य का प्रभाव समाज में ज्यादा फ़ैल रहा है लोग अब साहित्य पढ़ने के बजाय फिल्म देखना पसंद करते हैं, जो भारत में जाति, अस्पृश्यता और लिंग अध्ययन के विमर्श को बदलने में सिनेमा महत्वपूर्ण हाथ हो सकता है।
विभागाध्यक्ष सौरभ शुक्ला ने हमें विभिन्न संस्कृतियों को आत्मसात करने में प्रौद्योगिकी और भाषा की भूमिका पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने समकालीन समय में सामाजिक सुधार के साधन के रूप में प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के महत्व पर प्रकाश डाला। मैट्स यूनिवर्सिटी के माननीय चांसलर गजराज पगरिया, रजिस्ट्रार गोकुलानंद पांडा और डीजी प्रियेश पगरिया ने नए विचारों, बहसों और विचारों की चर्चा के लिए इस कार्यक्रम को सराहा और अंग्रेजी विभाग के प्रयासों की सराहना की।

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