रायपुर. शिकार का वर्णन करती माड़िया नृत्य बस्तर अंचल की विशिष्ट पहचान है. गौर’ नृत्य करते समय माड़िया पुरुष नर्तक अपने सिर पर गौर का सींग युक्त आभूषण सिर पर धारण करते हैं. इसी कारण से यह नृत्य गौर नृत्य कहलाता है. अविवाहित माड़िया युवक-युवतियां इसमें भाग लेते हैं. गौर को माड़िया बोली में माओ या पेटमा कहा जाता है, बांस की खपचियों के आड़े-तिरछे अवस्था में गौर सिंग को बांधा जाता है. कौड़ियों की लटें निकाल कर इसका सौंदर्य बढ़ाया जाता है. मुख्य रूप से वैवाहिक समारोहों में यह गौर नृत्य किया जाता है.
आदिवासी नृत्य महोत्सव: माड़िया एवं गौर नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति
