यूसुफ खान कैसे दिलीप कुमार बने

नयी दिल्ली. अभिनेता दिलीप कुमार के जीवन से जुड़े अनेक रोचक किस्से हैं और उनके बचपन के नाम यूसुफ खान से नये नाम तक के सफर की भी ऐसी ही अलग एक कहानी है. वह जन्मे तो मोहम्मद यूसुफ खान के रूप में थे लेकिन उस समय बॉम्बे टॉकीज की प्रमुख रहीं देविका रानी को उनका यह नाम पसंद नहीं था. यूसुफ खान ने अभिनेता के रूप में बॉम्बे टॉकीज के साथ काम शुरू किया था. देविका रानी ने उन्हें नया नाम दिलीप कुमार सुझाया जो उन्हें फिल्मों में अभिनेता की रोमांटिक छवि के अनुकूल लगा.

दिलीप कुमार का बुधवार सुबह 98 वर्ष की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘वजूद और परछाईं’ में नाम बदलने के बाबत पूरा किस्सा लिखा है. उन्होंने लिखा है, ‘‘एक सुबह, जब मैं स्टूडियो पहुंचा तो मुझे संदेश दिया गया कि देविका रानी मुझसे दफ्तर में मिलना चाहती हैं. मुझे हैरानी हुई कि क्या काम हो सकता है. मुझे यह तो भरोसा था कि वह कोई नाराजगी जाहिर करने के लिए नहीं बुला रही होंगी क्योंकि वह हमेशा खुश रहती थीं.’’

दिलीप साहब के मुताबिक वह देविका रानी के दफ्तर में पहुंचे तो वह अपनी डेस्क पर बैठी थीं. वह गर्मजोशी के साथ मुस्कराईं और उन्हें बैठने के लिए कहा. देविका रानी ने इधर-उधर की बातें कीं और अचानक से कहने लगीं, ‘‘यूसुफ, मैं तुम्हें जल्द ही अभिनेता के रूप में सिनेमा के पर्दे पर उतारने की सोच रही हूं और मुझे लगता है कि तुम फिल्मों के लिए कोई अलग नाम अपना लो.’’

देविका रानी ने उनसे कहा कि इस नाम से उनकी पहचान बनेगी और लोग उनसे जुड़ सकेंगे. उन्होंने पूछा कि दिलीप कुमार नाम कैसा रहेगा जो उनके दिमाग में सोचते-सोचते अचानक से आया था. दिलीप कुमार ने लिखा, ‘‘मैं एक पल के लिए अवाक रह गया. मैं नयी पहचान के लिए तैयार नहीं था. मैंने कहा कि नाम अच्छा है, लेकिन क्या वाकई जरूरी है. वह मुस्कराईं और मुझसे कहा कि ऐसा करना जरूरी है.’’ बाकी तो इतिहास है . इसके बाद उन्होंने 1944 में अपनी पहली फिल्म ‘‘ज्वार भाटा’’ से सुनहरे परर्दे पर आगाज किया और इस तरह यूसुफ खान दिलीप कुमार नाम से मशहूर हो गये.

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