प्रोडक्शन हो रहा है प्रभावित
दिल्ली के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल एरिया बवाना के मैन्यफैक्चरर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजीव गोयल ने बताया कि कोरोना काल में अनलॉक के बाद काफी हद तक फैक्ट्रियां शुरू हो गई थीं। मांग के मुताबिक प्रॉडक्शन होने लगा था। लेकिन, किसान आंदोलन की वजह से प्रोडक्शन प्रभावित हो रहा है। बॉर्डर पर किसानों का कई दिनों से प्रदर्शन चल रहा है। इसके चलते हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बने हुए माल की सप्लाई नहीं हो रही है।
हिमाचल में दवा फैक्ट्री को दिल्ली से होती है बोतल की सप्लाई
गोयल बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में दवा की ढेर सारी कंपनियां हैं। वहां दवाओं की पैकिंग के लिए खाली बोतलें यहीं से जाती हैं। इसी तरह कई तरह के कच्चे माल की पैकिंग सामग्री भी दिल्ली से उत्तर भारत के राज्यों में जाती है, जो अब नहीं जा पा रही है। फैक्ट्रियों में स्टॉक भर गया है, गोदाम में तैयार माल रखने की जगह नहीं है, तो प्रॉडक्शन घटानी पड़ रही है।
दो शिफ्ट की बजाए एक शिफ्ट
दिल्ली के अधिकतर इंडस्ट्रियल एरिया में कोरोना लॉकडाउन के बाद दो शिफ्टों में काम शुरू हो गया था। अब प्रोडक्शन घटाने की वजह से एक शिफ्ट में ही काम हो रहा है। इससे मजदूरों का रोजगार भी संकट में पड़ गया है। इन उद्यमियों ने सरकार से गुजारिश है कि जल्द किसानों की मांगो पर ठोस निर्णय लेकर प्रदर्शन को खत्म कराए। बवाना में 14-15 हजार छोटी बड़ी रनिंग इंडस्ट्री है। उन तक जरूरी सामान को पहुंचाने की ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट 10 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
अब तो ट्रांसपोर्टर भी नहीं कर रहे बुकिंग
नरेला इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट अशोक गोयल का कहना है कि मीडिया में बॉर्डर बंद होने की खबर आते ही दूसरे राज्यों के ऑर्डर कैंसल हो जाते हैं। अब तो ट्रांसपोर्टर भी माल की बुकिंग नहीं कर रहे, क्योंकि गाड़ी फंस गई तो अतिरिक्त पैसा नहीं मिलेगा। नरेला इंडस्ट्रियल एरिया तो सिंघू बॉर्डर के एकदम निकट है, जहां छोटी-बड़ी 3374 फैक्ट्रियां हैं। सीमापार से कर्मचारियों को भी दिल्ली में आना भारी हो गया है। एक तो लॉकडाउन के बाद से पूरी तरह फैक्ट्रियां नहीं चल पाई हैं, ऊपर से जो चल रही हैं वे किसानों के प्रदर्शन से सब डिस्टर्ब हो गई हैं। अब किसी तरह इधर-उधर के बॉर्डर माल की सप्लाई कर रहे हैं। कुछ जगहों पर माल नहीं पहुंच पा रहा, तो पेमेंट आनी बंद हो गई है। बिना पैसे के फैक्ट्रियां कैसे चलेंगी?