आर्यसमाज के मैरिज सर्टिफिकेट को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता देने से किया इनकार


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए आर्य समाज की ओर से जारी किए गए विवाह के प्रमाण पत्र को गैर कानूनी घोषित कर दिया है। जिसके बाद कहा जा सकता है कि आर्य समाज मंदिरों की शादी कानूनी तौर पर वैध नहीं है। दरअसल जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आर्य समाज का काम विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है। यह काम सक्षम प्राधिकरण ही कर सकते हैं। इसलिए कोर्ट ने विवाह का असली प्रमाण पत्र पेश करने के निर्देश दिए हैं।

क्या है पूरा मामला
दरअसल एक प्रेम विवाह के मामले में लड़की के घर वालों ने बालिका को नाबालिग बताते हुए उसके अपहरण और दुष्कर्म की एफ आई आर दर्ज कराई थी। जिसके बाद आरोपी युवक ने दावा किया कि लड़की बालिग है और उसने अपनी इच्छा से विवाह करने का फैसला लिया है। जिसके बाद युवक ने आर्य समाज मंदिर में शादी होने की बात कहते हुए मध्य भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र को कोर्ट में प्रस्तुत किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध प्रमाण पत्र मानने से इनकार कर दिया।

पहले भी उठ चुका है मामला
बता दें कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल माह में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने की सहमति दी थी। जिसमें आर्य समाज संगठन को मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा को विवाह संपन्न करते समय विशेष विवाह अधिनियम 1954 के प्रावधानों का पालन करने के निर्देश दिए गए थे। जस्टिस के एम जोसफ और जस्टिस ऋषिकेश राय ने नोटिस जारी करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी। जहां सभा को विशेष अधिनियम विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5, 6, 7 और 8 के प्रावधानों को शामिल करते हुए अपने गाइडलाइंस में 1 महीने के अंदर संशोधन करने का निर्देश दिया। जिसके बाद हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी आर्य समाज मंदिर में एक प्रधान द्वारा जारी प्रमाण पत्र की जांच के आदेश दिए थे।

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