सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (मध्यस्थता पंचाट) के पास ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 के तहत आने वाले विवादों पर फैसला देने का अधिकार है। हालांकि स्टेट रेंट कंट्रोल लॉज के तहत आने वाले विवादों को आर्बिट्रेशन में नहीं भेजा जा सकता है और इनका फैसला कानून के तहत कोर्ट या फोरम करेंगे।
कोर्ट ने क्या कहा
जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने 14 दिसंबर को विद्या ड्रोलिया और अन्य बनाम दुर्गा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन मामले में यह फैसला दिया। इस तरह कोर्ट ने 2017 के अपने फैसले को ही पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एक 4 फोल्ड टेस्ट का भी सुझाव दिया है जिससे यह तय किया जा सकता है कि किसी विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जा सकता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसलिए अहम है क्योंकि सरकार पूरे देश में रेंटल हाउसिंग पर जोर दे रही है और किराएदारों के लिए चीजों को आसान बना रही है। मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने के लिए जरूरी है कि दोनों पक्षों के बीच एग्रीमेंट में इसका क्लॉज हो। कोर्ट ने साथ ही कहा है कि मध्यस्थता पंचाट के फैसले को अदालत के आदेश की तरह लागू किया जा सकता है।
क्या हैं इसके मायनेलॉ फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर अभिलाष पिल्लई ने कहा कि लीजिंग इंडस्ट्री की मौजूदा जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्बिट्रेशन निष्पक्ष और कारगर व्यवस्था है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किराए से जुड़े विवादों का तेजी से निपटारा हो सकेगा और इससे न्यायपालिका पर भी बोझ कम होगा। मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए यह फैसला काफी अहम है क्योंकि वहां बड़ी संख्या में ऐसे मामलों को Small Causes Court में फाइल किया जाता है। अब आर्बिट्रेटर इन पर फैसला दे सकता है।