रायपुर। कई बार जो काम गुरु की उपस्थिति नहीं करा पाती है, वह काम गुरु के आशीर्वाद से ही हो जाता है। हर बार गुरु प्रत्यक्ष हो यह जरूरी नहीं है। गुरु पर आपकी आस्था होनी चाहिए। गुरु के प्रति आस्था, श्रद्धा और समर्पण नहीं हो, तो आपको आशीर्वाद भी नहीं मिल सकता है। आशीर्वाद के बिना जीवन में गुर का होना या नहीं होना एक बराबर है। गुरु का केवल ज्ञानवान होना आवश्यक नहीं है, गुरु के प्रति हमारे दिल में श्रद्धा का होना, आस्था का होना, समर्पण का होना आवश्यक है। यह बातें बुधवार को गुरु पूर्णिमा पर न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
घर में कोई आपकी नहीं सुनता, तो आप बाहर उम्मीद कैसे रख सकते हैं
अगर कुमार पाल राजा को गुरु नहीं मिले होते, तो 18 देशों में दया और प्रेम की बात नहीं हो सकती थी। आज तो यहां हमारा खुद के घर में आधिपत्य नहीं है, लोगों की अपने ही घर में नहीं चलती है। आज की तारीख में कोई ऐसा बोल नहीं सकता कि मेरे घर में केवल मेरी ही चलती है और मेरे घरवाले मेरी बात मानते हैं। किसी के घर में किसी की नहीं चलती है। आपकी आपके घर में ही नहीं चलती और आप समाज, संस्था और व्यापार चलाने आते हो। फिर भी आप सोचते हो यहां मेरी ही चले। आपकी पत्नी और आपके बच्चें भी आपके अनुसार नहीं चलते हैं। फिर सोचिए बाहर के लोग आपके हिसाब से कैसे चलेंगे। वहीं 18 देशों के राजा, उनकी पुरे साम्राज्य में चलती थी। अपने घर में भी उन्हीं की चलती थी और बाहर में भी चलती थी। जो राजा कह दें, वह होता था और जिसे वे ना कह दे, वह चीज हरगिज नहीं होती थी। राजा अपने 11 लाख घोड़े और 84 हजार हाथियों को पानी छानकर पिलाने का आदेश देते थे, और वैसा ही किया जाता था। जबकि आप सोचिये आप अपना पानी भी छानकर नहीं पीते है। वहां लाखों घोड़ो और हाथियों को भी पानी छानकर पिलाया जाता था। यहां हमारा खुद के ऊपर भी नियंत्रित नहीं है, तो हम कैसे दूसरों की बात कर सकते हैं।
किसी का मारना तो दूर, मार शब्द का भी प्रयोग नहीं कर सकते आप
राजा कुमार पाल के शासन काल में कोई किसी को मार नहीं सकता था। मारना तो दूर की बात है, मार शब्द का प्रयोग भी नहीं कर सकता था। कार्य करना तो दूर, कार्य को क्रियान्वित करने वाले शब्द का उच्चारण भी उनके दरबार में नहीं हो सकता था। अपने घर के अंदर और बाहर में भी कोई मार शब्द नहीं कह सकता था। आज आप सुबह से लेकर शाम तक मार शब्द का उपयोग करते रहते हो। सुबह काम वाली बाई आ जाये तो उस कहते हो झाड़ू मार देना। रोज की दिनचर्या में ताला मार देना, मिस कॉल मार देना जैसे वाक्यों का प्रयोग करते रहते हो। ऐसा बोलकर हमारे परिणाम दया से कम होते जाते है। दया हमारे जीवन से घटती जाती है। जबकि हमारी दया बढ़नी चाहिए, हमारे अंदर दया का परिणाम बढ़ना चाहिए।
इसीलिए कहा जाता है कि श्रावकों का जीवन दया का झरना है। साधु-संतों का जीवन और उनका हृदय प्रेम की नदी हैं और परमात्मा का अंत:करण करुणा का सागर है। फर्क देखिए एक झरना है, दूसरा नदी है और तीसरा सागर है। ऐसी साधना कुमार राजा ने की तो किसकी बदौलत, केवल गुरु के बदौलत की। समर्पण करना है तो प्रण लो कि चातुर्मास के इन चार महीनों में हमें कुमार पाल राजा जैसा बनना है, उनके जैसा कुछ करना है।
गुरु पूर्णिमा पर हुई गुरु वंदना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति
चातुर्मासिक प्रवचन के बाद बुधवार को गुरु पूजा की गई। इसके बाद बच्चों और महिलाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। सबसे पहले स्नेह वीर्ति ग्रुप के बच्चों ने नाटक के माध्यम से झूठ नहीं बोलना, माता-पिता को धोखा नहीं देना और मद्यपान नहीं करने का संदेश दिया। उनके बाद विचझण महिला मंच, गुंजन कोटडिया और दर्शना सकलेचा, शताब्दी डलहडिया, रेखा राय सोमी, प्रियंका गुणधर, पायल लोढ़ा, खैरागढ़ की श्रेया जैन और विचझण विद्यापीठ स्कूल के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी।
हर काम गुरु की उपस्थिति से नहीं होता, कुछ कार्य गुरु के आशीर्वाद मात्र से भी होते हैं: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी
