भगवान श्रीकृष्ण ने भी महाभारत में इंदिरा एकादशी के महत्व का उल्लेख किया है. ज्योतिष के जानकारों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है. बता दें, इस बार इंदिरा एकादशी का व्रत 21 सितंबर को रखा जाएगा. जानिए आश्विन महीने की ये पवित्र एकादशी क्यों है इतनी महत्वपूर्ण.
इंदिरा एकादशी का व्रत 21 सितंबर को रखा जाएगा
व्रत का पारायण 22 सितंबर को किया जाएगा
हर एकादशी महत्वपूर्ण है और हर एकादशी की अपनी अलग महिमा है. हिंदू परंपरा में एकादशी को पुण्य कार्य और भक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. माना जाता है कि व्रतों में सबसे बड़ा व्रत एकादशी का है और ये व्रत इंसान की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर विशेष सकारात्मक प्रभाव डालता है. व्रतों में प्रमुख व्रत नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या तथा एकादशी के हैं, उसमें भी सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर , दोनों पर पड़ता है. एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है. अब ऐसे में सवाल ये है कि क्या है इंदिरा एकादशी महत्व और इसकी महिमा को खास क्यों माना जाता है. ज्योतिषियों के मुताबिक इंदिरा एकादशी पितृपक्ष के दौरान आती है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
इंदिरा एकादशी का महत्व ?
एकादशी व्रत के मुख्य देवता भगवान् विष्णु, श्रीकृष्ण या उनके अवतार होते हैं.
अश्विन मास में एकादशी उपवास का विशेष महत्व है.
इस व्रत से मन और शरीर दोनों ही संतुलित रहते हैं. खास तौर पर एकादशी का ये उपवास गंभीर रोगों से रक्षा करता है.
पाप नाश और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अश्विन मास की इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है.
इस व्रत के प्रताप से पापों का नाश तो होता ही है साथ में पूर्वजों को भी मुक्ति मिलती है.
इस बार इंदिरा एकादशी का व्रत 21 सितंबर को रखा जाएगा.
ऐसी मान्यता है कि अगर आप पितृपक्ष में किसी कारण से पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाए हैं, तो इस दिन व्रत करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है. लेकिन कुछ सावधानी भी इस एकादशी से जुड़ी है जिसे ध्यान में रखना भी महत्वपूर्ण है.
इंदिरा एकादशी व्रत की सावधानी
इंदिरा एकादशी पर सूर्य उदय से पहले उठने का प्रयास करें.
घर में तामसिक भोजन बिल्कुल भी ना बनाएं.
एकादशी की पूजा पाठ में साफ-सुथरे कपड़ों का प्रयोग करें, काले नीले वस्त्र न पहनें.
एकादशी के व्रत विधान में परिवार में शांतिपूर्वक माहौल रखें.
सभी प्रकार की पूजा पाठ की सामग्री शुद्ध और साफ ही प्रयोग में लाएं.
पूजा में पीले फल और फूल जरूर प्रयोग करें.
सच्ची श्रद्धा और पूर्ण विश्वास के साथ भक्ति करने पर आपको भी समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिल सकता है.
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि
सुबह स्नान के बाद सबसे पहले सूर्य को अर्घ्य दें, फिर भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप की आराधना करें.
उनको पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें, फल भी अर्पित कर सकते हैं.
भगवान का ध्यान करें और उनके मन्त्रों का जाप करें.
पूर्ण रूप से जलीय आहार या फलाहार लें तो इसके परिणाम और भी उत्तम होंगे.
इस दिन फलाहार का दान करें औऱ गाय को भी फल आदि खिलाएं.
अगले दिन सुबह निर्धन लोगों को भोजन कराएं.
वस्त्र आदि का दान करें और स्वयं भोजन करके व्रत का समापन करें.
पितरों की तृप्ति के इन दिनों में पड़ने के कारण ये एकादशी और भी फलदायी है. कई बार पितृरों का उद्धार न हो पाने के कारण पितृदोष लग जाता है. जिससे हर कार्य में बार-बार रुकावटें आती हैं. ऐसे में ये व्रत वरदान के समान है. इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से रखेंगे तो पितृरों का उद्धार होगा. इस तिथि को कुछ विशेष उपायों और प्रयोगों से अतृप्त और अशांत पितृ गणों को मुक्ति दिलाने के उपाय भी किए जा सकते हैं.
पितरों के लिए इस दिन क्या विशेष प्रयोग करें ?
पितृ पक्ष की एकादशी के दिन महाप्रयोग करके पितरों के लिए शांति की कामना करें.
एकादशी के दिन उड़द की दाल, उरद के बड़े और पूरियां बनाएं, इस दिन चावल का प्रयोग न करें.
एक उपला जला लें और उस पर एक पूरी में रखकर उड़द की दाल और उड़द के बड़े की आहुति दें.
एक जल से भरा पात्र भी रखें, फिर भगवद्गीता का पाठ करें.
निर्धनों को भोजन कराएं और उनका आशीर्वाद लें.
एकादशी व्रत का पारायण एक दिन बात किया जाता है. इसलिए इंदिरा एकादशी व्रत का पारायण 22 सितंबर को किया जाएगा.
पितरों की शांति के लिए
भगवान विष्णु को फल और तुलसी दल अर्पित करें.
विष्णु भगवान के सामने भगवदगीता का पाठ करें.
निर्धनों को फल का दान करें औऱ एक तुलसी का पौधा जरूर लगाएं.
किसी सार्वजनिक स्थान पर पीपल का पौधा लगा दें.
पितृ पक्ष में पशु पक्षियों की सेवा करना बहुत शुभ होता है.
इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है.
कहा जाता है अगर सच्चे मन और श्रद्धा भाव से इस एकादशी का व्रत किया जाए तो पितृ का उद्धार होता है और पितरों को मोक्ष मिल जाता है.