नए कृषि कानूनों (New Farm Laws) के खिलाफ आंदोलन (Farmer Protest) कर रहे किसान संगठनों ने दो टूक कह दिया है कि बातचीत के अजेंडे में इन कानूनों को रद्द करना शामिल किया जाए। गुरुवार को संगठनों ने आरोप लगाया कि बातचीत के लिए सरकार का नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि किसानों के बारे में एक दुष्प्रचार है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि वे बातचीत को इच्छुक नहीं हैं।
MSP के लिए कानूनी गारंटी का मुद्दा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
किसान संगठनों ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी का मुद्दा उनके आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। केंद्र के पत्र पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के शुक्रवार को बैठक करने और इसका औपचारिक जवाब देने की संभावना है। बता दें कि दिल्ली के तीन एंट्री पॉइंट्स- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बार्डर पर पिछले 29 दिनों से इस मोर्चे के बैनर तले 40 किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं।
सरकार ने किसानों को फिर लिखी चिट्ठी
इससे पहले आज कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के नेताओं को पत्र लिखकर उन्हें बातचीत के लिए फिर से आमंत्रित किया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित किसी भी नई मांग को अजेंडे में शामिल करना ‘तार्किक’ नहीं होगा क्योंकि नए कृषि कानूनों से इसका कोई संबंध नहीं है। सरकार का पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है, जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है, तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं।
सरकार हमारे खिलाफ कर रही दुष्प्रचार
मोर्चे के वरिष्ठ नेता शिवकुमार कक्का ने कहा, ‘सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है और वह रोज पत्र लिख रही है। नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि सरकार की ओर से हमारे खिलाफ किया जा रहा एक दुष्प्रचार है, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि हम बातचीत के इच्छुक नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘सरकार को नए सिरे से वार्ता के लिए तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने (की मांग) को अजेंडे में शामिल करना चाहिए।’ कक्का ने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों की मांग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे सरकार द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सरकार ने किसान संगठनों से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख पूछी
वहीं, सरकार की तरफ से विवेक अग्रवाल ने 40 किसान संगठनों को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा, ‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है और ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की बातचीत के लिए) तारीख और समय बताएं।’ सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
सरकार के पत्र में कोई नया प्रस्ताव नहीं
एक अन्य किसान नेता लखवीर सिंह ने कहा कि किसान संगठनों को सरकार की ओर से लिखे गए पत्र में कोई नया प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) कह सकते हैं कि ये कानून एमएसपी को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि यदि एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) बाजार में नहीं होगा, तो एमएसपी पर हमारी फसल कौन खरीदेगा?’ ऑल इंडिया किसान सभा (पंजाब) के उपाध्यक्ष सिंह ने दावा किया, ‘यहां तक कि आज की तारीख में, एमएसपी के दायरे में जो 23 फसलें आती हैं और उनमें सिर्फ गेहूं, चावल और कभी-कभी कपास की खरीद एमएसपी पर की जाती है।’
MSP गारंटी अधिनियम चाहते हैं किसान
क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रेस सचिव अवतार सिंह मेहमा ने कहा कि केंद्र यह दावा जारी रख सकता है कि नए कानून एमएसपी प्रणाली को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन किसान एमएसपी गारंटी अधिनियम चाहते हैं जो यह सुनिश्चित करेगा कि उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिके। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त किसान मोर्चा सरकार के पत्र पर चर्चा करने के लिए शुक्रवार को बैठक करेगा और फिर इसका जवाब देगा।’
करीब एक महीने से डटे हुए हैं किसान
गौरतरब है कि सितंबर में लागू किए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान लगभग एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से हैं। इन किसानों की साफ तौर पर मांग हैं कि तीनों नए कृषि कानूनों को सरकार वापस ले और एमएसपी को कानून बनाए।