पीएम जनमन योजना का मुख्य उद्देश्य पीवीटीजी समूहों को संपूर्ण रूप से सशक्त बनाना: शम्मी आबिदी

रायपुर। प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम जनमन) योजना के क्रियान्वयन हेतु आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान नया रायपुर के ऑडिटोरियम में आज दो दिवसीय प्रशिक्षण सह-कार्यशाला प्रारंभ हुई। आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग की आयुक्त शम्मी आबिदी ने प्रशिक्षण सह कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कहा कि पीएम जनमन योजना का मुख्य उद्देश्य विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूहों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ ही उनका सर्वांगीण विकास कर उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करना है।

उल्लेखनीय है कि विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों- बैगा, बिरहोर, अबुझमाड़िया, कमार एवं पहाड़ी कोरवा के सर्वांगीण विकास को दृष्टिगत रखते हुए 15 नवंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम जनमन) योजना प्रारंभ की गई है। इस संबंध में भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय से प्राप्त निर्देश अनुसार राज्यों को विस्तृत कार्य योजना बनाकर इनके समुचित विकास हेतु आवश्यक कार्य करने के निर्देश दिए गए हैं।

आयुक्त शम्मी आबिदी ने बताया कि योजना अंतर्गत 9 केन्द्रीय मंत्रालयों के माध्यम से 11 महत्वपूर्ण गतिविधियों का क्रियान्वयन किया जाना है। इन गतिविधियों में पक्के घर का प्रावधान, पक्की सड़क, नल से जल, समुदाय आधारित पेयजल, छात्रावासों का निर्माण, मोबाइल मेडिकल यूनिट, आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से पोषण, बहुउद्देशीय केन्द्रों का निर्माण, घरों का विद्युतीकरण (ग्रिड तथा सोलर पावर के माध्यम से), वनधन केन्द्रों की स्थापना, इंटरनेट तथा मोबाइल सर्विस की उपलब्धता और आजीविका संवर्धन के लिए कौशल विकास शामिल हैं। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों का संपूर्ण विकास करना ही इस योजना का मुख्य लक्ष्य है। इन सभी गतिविधियों का क्रियान्वयन मिशन मोड में तीन वर्ष की अवधि में पूर्ण कर सभी बसाहटों को आवश्यकतानुसार अधोसरंचनात्मक रूप से सुदृढ़ बनाना है।

प्रशिक्षण सह-कार्यशाला में आज प्रदेश के इन पीवीटीजी समुदायों, एनजीओ एवं विभागीय अधिकारियों सहित 198 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें प्रमुख रूप से इतवारी राम बैगा, दुरली बाई बैगा, सुकचंद नेताम, बेंदाराम बिरहोर, मनकुमार, कोलू मेरामी आदि शामिल थे।

लघु वनोपज उत्पाद के संरक्षण एवं संवर्द्धन पर दिया जाएगा विशेष बल
    
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपजों के संग्रहण में देश में अग्रणी राज्य है। प्रदेश में देश का लगभग 74 प्रतिशत लघु वनोपज संग्रहित होता है। वर्तमान मे प्रदेश में 67 लघु वनोपज की खरीदी शासन द्वारा की जा रही है। स्पष्ट है लघु वनोपजों का जनजातीय अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व है। इसीलिए यदि विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समहों का सर्वांगीण विकास करना है तो इनके द्वारा लघु वनोपज के संग्रहण एवं संवर्धन हेतु विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
इस संबंध में प्रशिक्षण सह-कार्यशाला के द्वितीय चरण में विभिन्न जिलों से आए जनजातीय प्रतिनिधियों ने उनके जिले में उत्पादित लघु वनोपज- कोदो-कुटकी, आंवला, नागरमोथा, बहेड़ा, गिलोय, तेंदूपत्ता, करंज बीज, कौंच बीज, इमली बीज, महुआ फल, रीठा फल, सतावर जड़, चरौटा बीज, कुसुम बीज, नीम बीज, जामुन बीज, पलाश फूल, झाडू छिंद, रैली कोसा आदि के संग्रहण के संबंध में आने वाली समस्याओं की विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर एमडी एमएफपी बी. आनंद बाबू ने उनके प्रश्नों के उत्तर देकर उनकी समस्याओं का निराकरण किया।

इसके अलावा कार्यशाला में कृषि, उद्यानिकी एवं पशुपालन, आजीविका मिशन, मनरेगा, ग्रामोद्योग, कौशल विकास, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं खाद्य, जल जीवन मिशन, पीएम आवास एवं ग्रामीण स्वरोजगार विषय पर भी विस्तार से परिचर्चा हुई। कार्यशाला में संबंधित विभागों के अधिकारियों ने जनजातीय प्रतिनिधियों को आवश्यक जानकारी दी। कार्यशाला को आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के अपर संचालक श्री संजय गौड़, उपायुक्त श्री प्रज्ञान सेठ ने भी संबोधित किया और उपस्थित जनजातीय प्रतिनिधियों की शंकाओं का समाधान किया।

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