रायपुर। जशपुर के पत्थलगांव के माडापर में एक 18 दिन के बच्चे को एक बैगा द्वारा दागने की घटना सामने आई है। जिससे बच्ची गंभीर रूप से घायल हो गई हैं। इसके पहले भी कुछ दिनों से छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों से बच्चों के बीमार होने पर गर्म सलाख से दागने के मामले सामने आए हैं। जिनमें से कुछ बच्चों की दुखद मौत तक हो चुकी है। छत्तीसगढ के महासमुंद और देवभोग से भी पीलिया की बीमारी के कारण नवजात शिशुओं को गर्म सलाख जिले के से दागने की कुछ घटनाऐं सामने आई थी।
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा नवजात शिशुओं को दागने की घटनाएं अकसर सामने आती है। ग्रामीण शिशु के दूध न पीने, अत्यधिक रोने, बुखार, दस्त, पीलिया जैसी समस्याओं के निदान के लिए दागे जाने के समाचार अक्सर मिलते हैं, जिससे शिशु की तबियत और अधिक खराब हो जाती है। कई बार समय पर उचित चिकित्सा सहायता उपलब्ध न होने पर उनकी मृत्यु भी हो जाती है। ग्रामीण एवं सुदूर आदिवासी अंचल से भी कुछ समय पहले निमोनिया व पीलिया के इलाज के लिए बैगाओं द्वारा सौ से अधिक बच्चों को गर्म चूड़ी से दागने की खबर आई थी। जिसमें अनेक बच्चों की मृत्यु घाव,संक्रमण बढ़ने से हुई थी। लोहे के हंसिये से दागने के भी अनेक मामले आते रहते हैं, जबकि यह सब अवैज्ञानिक तथा उचित नहीं है।
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कुछ नवजात शिशुओं में प्रारंभिक दिनों में सर्दी, खांसी, बुखार, निमोनिया, रात में जागना, बार बार रोना, गैस, अपच, पेट दर्द, पीलिया, बुखार, उल्टी करना जैसी कुछ समस्याएं आती है। इसके लिए शिशु की उचित जॉंच और इलाज प्रशिक्षित चिकित्सक से करवाना चाहिए। बीमारियों के अलग-अलग कारण होते हैं। जिनका जाँच और परीक्षण से उपचार होता है। स्व उपचार, झाड़ फूँक, सलाख, गर्म अगरबत्ती से दागने गण्डा, ताबीज पहनने, नजर उतारने आदि से बीमार को बीमारी से निजात नहीं दिलायी जा सकती है। ऐसा करने पर बच्चा अधिक बीमार हो सकता है और उसकी हालत बिगड़ सकती है। ग्रामीणों को इस प्रकार किसी भी अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए बल्कि अपने आस पास के किसी योग्य चिकित्सक का परामर्श लेना चाहिए।