तो जिनपिंग के 'खास' से नहीं मिलेंगे पीएम ओली? नेपाल में चीन के प्रभुत्व की उल्टी गिनती शुरू

काठमांडू
नेपाल को अपना शागिर्द बनाने की कोशिश में जुटे चीन को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तगड़ा झटका दे सकते हैं। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी जारी सियासी संग्राम को खत्म करने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने खास संदेशवाहक को काठमांडू भेज रहे हैं। इस बीच खबर है कि पीएम ओली चीन के इस विशेष दूत से मिलने से इनकार कर सकते हैं। ऐसे में चीन के अरमानों पर पानी फिरना तय है।

जिनपिंग भेज रहे अपना खास दूत
पीएम ओली और पुष्प कमल दहल के बीच जारी घमासान को शांत कराने में चीनी राजदूत हायो यांकी के फेल होने के बाद जिनपिंग की चिंता बढ़ गई है। आनन-फानन में उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्‍ट्रीय विभाग के उप मंत्री गूओ येझोउ को चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नेपाल भेजा है। रिपोर्ट के अनुसार, अपने चार दिन के काठमांडू दौरे में गूओ येझोउ नेपाल के राजनीतिक हालात को लेकर कई नेताओं से मुलाकात करेंगे।

ओली-प्रचंड से मिलेंगे जिनपिंग के खास
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अपनी नेपाल यात्रा के दौरान चीनी मंत्री नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के दोनों ही धड़ों के नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। इससे पहले नेपाल में चीनी राजदूत ने राष्‍ट्रपति बिद्या देवी भंडारी, प्रचंड, माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनल के साथ मुलाकात की थी। हालांकि, तब भी ओली ने नेपाली राजदूत से मिलने से इनकार कर दिया था।

पीएम ओली का चीनी दूत से मिलना तय नहीं
हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले के बताया है कि चीनी राजदूत हाओ यांकी ने गूओ येझोउ की यात्रा की सभी तैयारियों को पहले ही पूरा कर लिया है। उन्होंने जिनपिंग के इस खास दूत से मुलाकात के लिए ओली और प्रचंड से समय भी मांगा है। बताया जा रहा है कि प्रचंड ने चीनी दूत के साथ मुलाकात के लिए अपनी सहमति दे दी है, लेकिन ओली ने अभी तक इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं दिया है।

हाओ से मिलने से पहले ही इनकार कर चुके हैं ओली
पीएम ओली ने नवंबर के अंत में ही चीनी राजदूत हाओ यांकी से मिलने से इनकार कर दिया था। उन्होंने हाओ यांकी से दो टूक कहा था कि वे किसी दूसरे देश की सहायता के बिना ही अपनी पार्टी के भीतर की चुनौतियों से निपट सकते हैं। रिपोर्ट है कि ओली ने पहले ही चीनी राजदूत को बता दिया है कि चीन को नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि संसद को भंग करने के निर्णय की कानूनी चुनौती उच्चतम न्यायालय के समक्ष है।

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