लव जिहाद : धर्म परिवर्तन रोकने के लिए बनाए गए पर रोक लगाने से SC का इनकार, यूपी-एमपी को भेजा नोटिस

नई दिल्ली
शादी के लिए गलत तरीके से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाए गए यूपी और उत्तराखंड के कानून के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि इस मामले में बनाए गए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट का याचिकाकर्ता से सवाल- हाई कोर्ट क्यों नहीं गए?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इससे संबंधित मामले पहले से इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेंडिंग है। तब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि आखिर वो हाई कोर्ट क्यों नहीं गए। याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने कहा कि अन्य राज्यों ने भी इसी तरह के कानून बनाए हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा- ‘भयानक हैं नए बने कानूनों के प्रावधान’
याचिकाकर्ता ने कानून पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि शादी के बीच से लोगों को उठाया जा रहा है। इन कानूनों का कुछ प्रावधान काफी भयानक है क्योंकि शादी के लिए सरकार से इजाजत का प्रावधान किया गया है जो बिल्कुल आपत्तिजनक है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उत्तराखंड और यूपी राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने लगातार कानून पर स्टे की गुहार लगाई तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नहीं सुना है ऐसे में यह नहीं हो सकता और स्टे की गुहार को ठुकरा दिया।

याची की दलील- मौलिक अधिकार में दखल देता है कानून
सुप्रीम कोर्ट में दो अलग अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन (गलत तरीके से) रोकने के लिए जो यूपी और उत्तराखंड में कानून बनाया गया है वह संविधान के मौलिक अधिकार में दखल देता है और इस आड़ में उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो इन गतिविधियों में संलिप्त नहीं हैं। वहीं एक अन्य याचिका में कहा गया है कि ये कानून जीवन और लिबर्टी के अधिकार के साथ-साथ किसी को पसंद करने के अधिकार में दखल है।


गैर संवैधानिक और गैर कानूनी घोषित करने की मांग

दिल्ली की वकील विशाल ठाकरे एवं अन्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर भारत सरकार के साथ-साथ यूपी और उत्तराखंड सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि यूपी सरकार ने प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजियस ऑर्डिनेंस 2020 और उत्तराखंड सरकार ने फ्रीडम ऑफ रिलीजियस ऐक्ट 2020 अध्यादेश जारी किया है। ये दोनों अध्यादेश के जरिए बनाया गया कानून गैर संवैधानिक है। लव जिहाद की बात कह कर ये कानून बनाया गया जो संविधान के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इन अध्यादेशों को गैर संवैधानिक और गैर कानूनी घोषित किया जाएं क्योंकि ये संविधान के मूलभूत ढांचे को छेड़ता है।

‘स्पेशल मैरिज ऐक्ट के भी खिलाफ हैं कानून’
याचिकाकर्ता ने कहा है कि ये कानून संविधान के भाग तीन यानी मौलिक अधिकारों में दखल दे रहे हैं और सवाल है कि क्या संसद को संविधान के मौलिक अधिकार में दखल देने वाले कानून बनाने का अधिकार है। ऐसा नहीं हो सकता और मौलिक अधिकारों में दखल नहीं हो सकता। ये अध्यादेश उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो गलत नहीं हैं और उन्हें भी अध्यादेश की आड़ में नतीजे भुगतने होंगे। ये अध्यादेश स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के भी खिलाफ है। इससे समाज में डर पैदा होगा और जो लोग लव जेहाद जैसे काम नहीं करते उन्हें भी गलत तरीके से फंसाया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने कहा- निर्दोषों को फंसाने की आशंका
याचिकाकर्ता ने कहा कि अध्यादेश ऐसे लोगों को और गलत नियत वाले लोगों के हाथों में हथियार होगा जिसका इस्तेमाल कर ऐसे लोगों को फंसाया जा सकता है जो इसमें संलिप्त नहीं हैं और ये निर्दोष लोगों के साथ अन्याय होगा। सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ताओं ने गुहार लगाई है कि यूपी और उत्तराखंड के इस अध्यादेश को गैर संवैधानिक करार देते हुए खारिज किया जाए। एक अन्य याचिका एनजीओ की ओर से दाखिल किया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *