साल 1947 की जनवरी में लंदन में कड़ाके की ठंड गिर रही थी। उसी दौरान म्यांमार की आजादी की लड़ाई के हीरो को वहां जाना भी था। लंदन जाने से पहले सान भारत के होने वाले प्रधानमंत्री से मिलने नई दिल्ली आ पहुंचे। यह मुलाकात न सिर्फ आजादी के संघर्ष से जुड़ी हस्तियों के कारण चर्चित हुई बल्कि एक और वजह से यादगार भी रही।
नेहरू से मिलने पहुंचे सान
ऐंटी-फासिस्ट पीपल्स फ्रीडम लीग के नेता सान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली से मिलने जा रहे थे। तत्कालीन बर्मा की आजादी के मुद्दे पर एटली से चर्चा करने से पहले सान ने तय किया कि वह नेहरू से कुछ इनपुट लेंगे। वह जब दिल्ली पहुंचे तो नेहरू ने गर्मजोशी से गले लगकर उनका स्वागत किया। नेहरू सान से 26 साल सीनियर थे। दिल्ली में नेहरू के घर पर उनकी बेटी और आगे चलकर देश की पहली और अब तक इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मिले।
सान चार दिन तक नेहरू के साथ रहे और इस दौरान दोनों के बीच विस्तृत राजनीतिक चर्चा हुई। दिल्ली दौरे के दौरान वह इंडियन साइंस कांग्रेस में शरीक हुए, जनरल हेडक्वॉर्टर्स पहुंचे, वाइरॉय आर्चिबाल्ड पर्सिवल वॉवेल से मिले और भारतीय रक्षा मंत्री के साथ चाय पर मुलाकात भी की। हालांकि, इस पूरे दौरे में सबसे चर्चित रही नेहरू से जुड़ी एक घटना।
नेहरू ने किया कुछ खास
सान के लंदन के लिए निकलने से पहले नेहरू ने देखा कि बर्माई नेता ने सिर्फ खाकी यूनिफॉर्म पहनी है। उन्हें एहसास हुआ कि लंदन के सर्दीले मौसम में यह वर्दी सान को ठंड से बचा नहीं पाएगी। उन्होंने फौरन अपने दर्जी से जनरल सान और उनके सेक्रटरी लेफ्टिनेंट तुन ह्ला के लिए गर्म कपड़े बनवा दिए। कहा जाता है कि उस महीने लंदन में रेकॉर्डतोड़ सर्दी पड़ी थी लेकिन सान को नेहरू के कोट ने बचा लिया।
आगे चलकर उसी साल 15 अगस्त को भारत ब्रिटेन से आजाद हो गया और अगले साल 4 जनवरी, 1948 को बर्मा को भी आजादी मिल गई। दोनों नेताओं की मुलाकात का यह किस्सा आज भी चर्चित है।