ओवैसी भी हो आए… बंगाल की सियासत में आखिर इतनी अहम क्यों हो गई है यह दरगाह

चुनाव हो और धर्म का तड़का न लगे, ऐसा मुमकिन ही नहीं। यही वजह है कि चुनाव के वक्त दरगाहों- मजारों, आश्रमों- डेरों का महत्व बढ़ जाता है। यहां जो आस्था नतमस्तक रहती है, राजनीतिक दल उसे अपने वोटों में तब्दील होते देखना चाहते हैं। बंगाल चुनाव के ठीक पहले अचानक फुरफुरा शरीफ दरगाह इसलिए चर्चा में आ गई है। उसके अनुयायियों की तादाद बहुत ज्यादा है और उसके पीरजादा अब्बास सिद्दीक ने खुद राजनीति में एंट्री करने का फैसला कर लिया है। इस दरगाह के महत्व के मद्देनजर राजनीतिक उलटफेर के कयास लग रहे हैं। पिछले दिनों बंगाल दौरे पर पहुंचे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने यहीं पर अब्बास सिद्दीक से मुलाकात भी की थी जिसके बाद बंगाल की राजनीति में हलचल तेज है। एनबीटी के पॉलिटिकल ए़डिटर नदीम बता रहे हैं बंगाल की सियासत में दरगाह का महत्व-

पिछले दिनों एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी बंगाल दौरे में फुरफुरा शरीफ दरगाह पहुंचे और इसके बाद दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीक से मुलाकात की। इन तस्वीरों ने बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों की धुकधुकी तेज हो गई है। आइए जानते हैं बंगाल की राजनीति में दरगाह और पीरजादा का क्या महत्व है-

West Bengal Election: दरगाह, पीरजादा और पश्चिम बंगाल की सियासत में क्या हैं इसके मायने?

चुनाव हो और धर्म का तड़का न लगे, ऐसा मुमकिन ही नहीं। यही वजह है कि चुनाव के वक्त दरगाहों- मजारों, आश्रमों- डेरों का महत्व बढ़ जाता है। यहां जो आस्था नतमस्तक रहती है, राजनीतिक दल उसे अपने वोटों में तब्दील होते देखना चाहते हैं। बंगाल चुनाव के ठीक पहले अचानक फुरफुरा शरीफ दरगाह इसलिए चर्चा में आ गई है। उसके अनुयायियों की तादाद बहुत ज्यादा है और उसके पीरजादा अब्बास सिद्दीक ने खुद राजनीति में एंट्री करने का फैसला कर लिया है। इस दरगाह के महत्व के मद्देनजर राजनीतिक उलटफेर के कयास लग रहे हैं। पिछले दिनों बंगाल दौरे पर पहुंचे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने यहीं पर अब्बास सिद्दीक से मुलाकात भी की थी जिसके बाद बंगाल की राजनीति में हलचल तेज है। एनबीटी के पॉलिटिकल ए़डिटर

नदीम

बता रहे हैं बंगाल की सियासत में दरगाह का महत्व-

ओवैसी की दरगाह के पीरजादा से मुलाकात
ओवैसी की दरगाह के पीरजादा से मुलाकात

पश्चिम बंगाल की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी पहले से ही एक अबूझ पहली बने हुए हैं। उन्हें अब फुरफुरा शरीफ की दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीक का साथ मिलना सियासी समीकरणों में बदलाव का सबब समझा जाने लगा है। अब्बास सिद्दीक से पहले उस दरगाह के बारे में जान लेना जरूरी हो जाता है, जिसके वह पीरजादा हैं, क्योंकि उनकी सारी ताकत वह दरगाह ही है। अगर आप पश्चिम बंगाल पर्यटन मंत्रालय की वेबसाइट पर जाएंगे, तो फुरफुरा शरीफ की दरगाह राज्य के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में दर्ज पाएंगे।

फुरफुरा शरीफ का ऊंचा स्थान
फुरफुरा शरीफ का ऊंचा स्थान

फुरफुरा शरीफ दरगाह बंगाल के हुगली जिले में है और इसे बंगाली मुसलमानों के सबसे बड़े आस्था केंद्र के रूप में जाना जाता है। इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। इस दरगाह में हजरत अबु बकर सिद्दीक और उनके पांच बेटों की मजार है। हजरत अबु बकर की पैदाइश फुरफुरा शरीफ में सन 1846 में हुई थी और वह अपने वक्त के सबसे बड़े समाज और धर्मसुधारक माने गए थे। उनके जिंदा रहने के वक्त तो उनके मुरीद होने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती ही थी, उनके निधन के बाद भी यह सिलसिला बना रहा।

दरगाह के पीरजादों का महत्व
दरगाह के पीरजादों का महत्व

हजरत अबु बकर की याद में हर साल उर्स का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की जुटान होती है। इसमें अच्छी खासी तादाद गैर मुस्लिमों की होती है। इसी दरगाह परिसर में एक मस्जिद भी है, जिसका निर्माण वर्ष 1375 का बताया जाता है। इस दरगाह के जो पीरजादा होते हैं, वे हजरत अबु बकर सिद्दीक के ही वंशज माने जाते हैं। पीरजादा का शाब्दिक अर्थ होता है संत पुत्र। पीर यानी संत और जादा यानी पुत्र। पीर के वंशज होने की वजह से दरगाह के पीरजादों का दरगाह के प्रति आस्था रखने वालों के बीच बहुत सम्मान होता है।

आशीर्वाद लेने ओवैसी पहुंचे दरगाह
आशीर्वाद लेने ओवैसी पहुंचे दरगाह

चूंकि राज्य के ज्यादातर मुसलमान फुरफुरा शरीफ दरगाह के ही अनुयायी माने जाते हैं, इस वजह से चुनाव के मौके पर राजनीतिक दलों के बीच इस दरगाह का ‘आशीर्वाद’ लेने की होड़ रहती है। ओवैसी ने भी पिछले दिनों जब पश्चिम बंगाल का दौरा किया, तो सबसे पहले इसी दरगाह में जियारत के लिए पहुंचे। जम्मू-कश्मीर और असम के बाद पश्चिम बंगाल देश का तीसरा राज्य है, जहां मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। यहां की मुस्लिम आबादी 27 से 30 प्रतिशत के बीच आंकी जाती है।

ममता का मुस्लिम बेल्ट में दबदबा
ममता का मुस्लिम बेल्ट में दबदबा

राज्य के मुर्शिदाबाद जिले में मुस्लिम आबादी 66 प्रतिशत से ऊपर है। इसके अलावा तीन जिले- मालदा, उत्तर दिनाजपुर और बीरभूम में मुस्लिम आबादी 37 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक है। कोलकाता के पड़ोसी जिलों उत्तर और दक्षिण 24 परगना में 36 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है। राज्य की करीब 70 विधानसभा सीटें ऐसी मानी जाती हैं, जिनमें मुस्लिम वोटर्स निर्णायक हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अगर नजर डालें, तो पता चलता है कि इस बेल्ट में ममता बनर्जी ने अपना दबदबा बढ़ाया है।

अब्बास सिद्दीक का दांव, ममता के लिए मुश्किल
अब्बास सिद्दीक का दांव, ममता के लिए मुश्किल

2011 के चुनाव में उन्हें जहां इस इलाके की 30 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं 2016 में उन्होंने 38 सीटें जीतने में कामयाबी पाई थी। वोट शेयर भी 40 प्रतिशत को क्रॉस कर गया था। कांग्रेस और वामदलों के बीच यहां दूसरे और तीसरे स्थान की लड़ाई देखी गई थी। ममता बनर्जी इन इलाकों में इस बार अपने हक में पहले से कहीं बेहतर नतीजों की उम्मीद इसलिए लगाए हुए हैं कि उन्हें लगता है, बीजेपी के मजबूत होकर उभरने की स्थिति में मुस्लिम वोटर्स उनके साथ ही रहना पसंद करेंगे। लेकिन पीरजादा अब्बास सिद्दीक के नए दांव से ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कहना मुश्किल हो गया है।

कौन हैं अब्बास सिद्दीक?
कौन हैं अब्बास सिद्दीक?

38 साल के अब्बास सिद्दीक इस दरगाह के पीरजादा हैं। ऐसा नहीं कि वह इस दरगाह के अकेले पीरजादा हैं। दरगाह के कई पीरजादे हैं, वह उनमें से एक हैं लेकिन उनका महत्व इसलिए है कि वह शुरू से पर्दे के पीछे से राजनीति में सक्रिय हैं। एक समय वे ममता बनर्जी के समर्थक माने जाते थे। ममता बनर्जी कैंप में जिन गुने-चुने लोगों का असर माना जाता रहा है, उनमें अब्बास सिद्दीक भी शामिल रहे हैं। अब्बास सिद्दीक के ही करीबी लोग बताते हैं कि जिस सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ममता बनर्जी ने राजनीति में अपनी कामयाबी की इबारत लिखी, उसके पीछे ‘अब्बास भाईजान’ का दिमाग था और उस आंदोलन में भीड़ ‘भाईजान’ के ही जरिए जुटी थी।

ममता का विरोध, ओवैसी के ‘फैन’
ममता का विरोध, ओवैसी के 'फैन'

लेकिन इस चुनाव से ठीक पहले अब्बास सिद्दीक टीएमसी और ममता सरकार के विरोध में बोलने लगे, तभी सियासी गलियारों में हलचल मचनी शुरू हुई। उन्होंने ममता बनर्जी पर मुस्लिम हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। पिछले रविवार को असदुद्दीन ओवैसी के साथ उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि वह तो ‘ओवैसी साहब’ के बहुत पुराने ‘फैन’ हैं। उनसे दूरी इस वजह से थी कि वह बंगाल की पॉलिटिक्स से दूर थे। अब जब वह बंगाल की पॉलिटिक्स में आ रहे हैं, तो मुसलमानों की आवाज को और ज्यादा मजबूती मिलेगी।

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