E-Tendering Racket Case: ईडी ने भोपाल, हैदराबाद सहित बेंगलुरु में की ताबड़तोड़ छापेमारी

नई दिल्ली
(ईडी) ने मध्य प्रदेश के कथित ई-निविदा धांधली रैकेट से जुड़ी धनशोधन संबंधी जांच के सिलसिले में भोपाल, हैदराबाद और बेंगलुरु में कई स्थानों पर छापेमारी की है। यह मामला तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि से जुड़ा है। आधिकारिक सूत्रों ने बृहस्पतिवार को बताया कि सबूत जुटाने के लिए एजेंसी ने मामले में संलिप्त विभिन्न संदिग्धों के स्थानों पर इस सप्ताह की शुरुआत में छापेमारी अभियान शुरू किया और यह कार्रवाई धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत की जा रही है।

सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश के एक पूर्व मुख्य सचिव से जुड़े परिसर सहित भोपाल, हैदराबाद और बेंगलुरु में कम से कम 15-16 स्थानों पर छापेमारी की गई और आज भी कुछ स्थानों पर छापेमारी जारी है। ईडी ने पिछले साल एक आपराधिक मामला दर्ज किया था, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार के ई-टेंडर पोर्टल को निविदाओं में हेरफेर करने और अनुबंध हथियाने के लिए ‘हैक’ किया गया था तथा कथित तौर पर यह भाजपा के शासन के दौरान हुआ था।

जानिए क्या था पूरा मामला?
दरअसल सबसे पहले, मध्य प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार के दौरान पिछले साल इस संबंध में मामला दर्ज किया था। ईडी ने पीएमएलए के तहत मामला दर्ज करने के लिए इस प्राथमिकी का अध्ययन किया। ईओडब्ल्यू ने सात कंपनियों के निदेशकों और विपणन प्रतिनिधियों, राज्य सरकार के पांच विभागों के अज्ञात अधिकारियों और कुछ नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इन लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 420 (धोखाधड़ी), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे।

इन कंपनियों का नाम आया सामने
ईओडब्ल्यू ने एक बयान में कहा था कि कथित रैकेट में शामिल निर्माण कंपनियों में ‘जीवीपीआर लिमिटेड’ तथा ‘मैक्स मैंटेना’ (दोनों हैदराबाद में स्थित हैं), ‘ह्यूम पाइप लिमिटेड’ तथा ‘जेएमसी लिमिटेड’ (दोनों मुंबई स्थित), ‘सोरठिया वेलजी लिमिटेड’ तथा ‘ माधव इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स’ (दोनों वड़ोदरा स्थित) और ‘राम कुमार नरवानी लिमिटेड’ (भोपाल स्थित) शामिल हैं। कंपनियों ने जनवरी और मार्च, 2018 के बीच 3,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को सबसे कम दरों पर हासिल करने के लिए कथित रूप से ‘एमपी ई-टेंडरिंग पोर्टल’ को ‘हैक’ कर लिया था। हालांकि बाद में इन निविदाओं को रद्द कर दिया गया था।

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