ब्रह्मांड का 85% हिस्सा माना जाता रहा डार्क मैटर असल में है ही नहीं? नई स्टडी में दावा, तारों की अजीब हरकतों के पीछे ग्रैविटी का असर

वॉशिंगटन
ब्रह्मांड को लेकर ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब आज भी इंसान ढूंढ रहा है। जिन बातों का सबूत नहीं मिल पाता उन पर कोई न कोई थिअरी होती है लेकिन विज्ञान जगत की खूबसूरती यही है कि हर नई खोज किसी नई संभावना की ओर ले जाती है और पहले की थिअरी पुरानी हो जाती है। ऐसा ही कुछ होता दिख रहा है ‘डार्क मैटर’ के साथ। अभी तक माना जा रहा था कि आकाशगंगाओं के अंदर सितारों के अजीब व्यवहार के पीछे वजह का गुरुत्वाकर्षण होती है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम के मुताबिक ऐसा कुछ है ही नहीं।

क्या होता है डार्क मैटर?
डार्क मैटर ऐसे अज्ञात तत्वों को कहते हैं जो आम मैटर से सिर्फ गुरुत्वाकर्षण के जरिए इंटरैक्ट करता है। यह ना ही रोशनी का उत्सर्जन करता है, ने रिफलेक्ट करता है और न उसे सोखता है। इसे कभी सीधे तौर पर डिकेक्ट भी नहीं किया जा सका है। अब रिसर्चर्स को एक एक्सटर्नल फील्ड इफेक्ट (EFE) मिला है जो कमजोर गुरुत्वाकर्षण की तरंग होती है। इसे 150 से ज्यादा आकाशगंगाओं के सितारों की ऑर्बिटल स्पीड में ऑब्जर्व किया गया है।

कुछ और है वजह
स्टडी के मुताबिक यह डार्क मैटर की थिअरी के साथ मेल नहीं खाता बल्कि Modified Newtonian Dynamics (MOND) या मॉडिफाइड ग्रैविटी से जरूर मिलता है। इस थिअरी के मुताबिक किसी खगोलीय ऑब्जेक्ट के अंदर होने वाला मोशन सिर्फ उसे द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता बल्कि दूसरे ऑब्जेक्ट्स के गुरुत्वाकर्षण पर भी करता है। इसे एक्सटर्नल फील्ड इफेक्ट कहते हैं।

डार्क मैटर का सबूत नहीं
डार्क मैटर या मिसिंग मैटर का कॉन्सेप्ट 1933 में आया था जब यह खोज की गई थी कि कोमा क्लस्टर की गैलेक्सियों में सभी सितारों के कुल द्रव्यमान के सिर्फ एक प्रतिशत का इस्तेमाल पूरे क्लस्टर के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने से रोकने के लिए किया जा रहा था। इसके दशकों बाद 1970 में ऐस्ट्रोनॉमर वेरा रूबिन और केंट फोर्ड ने सितारों की अजीब कक्षा खोजी।

विज्ञान जगत ने इसके बाद डार्क मैटर के द्रव्यमान को इस अजीब व्यवहार का जिम्मदार माना। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ब्रह्मांड में 85% हिस्सा डार्क मैटर ही है लेकिन इसका कोई सबूत कभी नहीं दिया जा सका है। हालांकि, स्टडी करने वाली टीम का कहना है कि ऐसे व्यवहार के लिए किसी अनदेखी चीज को नहीं बल्कि ग्रैविटी में होने वाले बदलाव को जिम्मेदार माना जाना चाहिए।

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