लाल बहादुर तब ठीक से बोल भी नहीं पाते थे। सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां बच्चों को लेकर अपने पिता के यहां चली आईं। पढ़ाई-लिखाई के लिए दूसरे गांव के स्कूल में दाखिला करा दिया गया। शास्त्री अपने कुछ दोस्तों के साथ आते-जाते थे। रास्ते में एक बाग पड़ता था। उस वक्त उनकी उम्र 5-6 साल रही होगी। एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला नदारद था। लड़कों को लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। सब लपक कर पेड़ों पर चढ़ गए। कुछ फल तोड़े मगर धमाचौकड़ी मचाने में ज्यादा ध्यान रहा। इतने में माली आ गया। बाकी सब तो भाग गए मगर अबोध शास्त्री वहीं खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्होंने उसी बाग से तोड़ा था।
Lal Bahadur Shastri death anniversary: लाल बहादुर शास्त्री के पिता शारदा प्रसाद एक अध्यापक थे। शास्त्री की उम्र बमुश्किल डेढ़ साल रही होगी जब पिता का प्लेग के चलते निधन हो गया।
लाल बहादुर तब ठीक से बोल भी नहीं पाते थे। सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां बच्चों को लेकर अपने पिता के यहां चली आईं। पढ़ाई-लिखाई के लिए दूसरे गांव के स्कूल में दाखिला करा दिया गया। शास्त्री अपने कुछ दोस्तों के साथ आते-जाते थे। रास्ते में एक बाग पड़ता था। उस वक्त उनकी उम्र 5-6 साल रही होगी। एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला नदारद था। लड़कों को लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। सब लपक कर पेड़ों पर चढ़ गए। कुछ फल तोड़े मगर धमाचौकड़ी मचाने में ज्यादा ध्यान रहा। इतने में माली आ गया। बाकी सब तो भाग गए मगर अबोध शास्त्री वहीं खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्होंने उसी बाग से तोड़ा था।
एक फूल तोड़ने की सजा… दो तमाचे
माली ने बाग की हालत देखी और फिर नन्हे शास्त्री को। सबका गुस्सा उसी पर उतरा। एक झन्नाटेदार तमाचा उस बच्चे के गाल पर पड़ा तो वह रोने लगा। मासूमियत में शास्त्री बोले, “तुम नहीं जानते, मेरा बाप मर गया है फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।” शास्त्री को लगा था कि पिता के न होने से लोगों की सहानुभूति मिलेगी, लोग प्यार करेंगे। केवल एक फूल तोड़ने की छोटी की गलती के लिए उसे माफ कर दिया जाएगा, मगर ऐसा हुआ नहीं। जोरदार तमाचे ने उस बच्चे की सारी आशाओं को खत्म कर दिया था। वह वहीं खड़ा सुबकता रहा। माली ने देखा कि ये बच्चा अब भी नहीं भागा, न ही उसकी आंखों में डर है। उसने एक तमाचा और रसीद कर दिया और जो कहा, वह शास्त्री के लिए जिंदगी भर की सीख बन गया।
…और उस दिन से सबकुछ बदल गया
माली ने कहा था, “जब तुम्हारा बाप नहीं है, तब तो तुम्हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। और सावधान रहना चाहिए। तुम्हें तो नेकचलन और ईमानदार बनना चाहिए।” लाल बहादुर शास्त्री के मन में उस दिन यह बात बैठ गई कि जिनके पिता नहीं होते, उन्हें सावधान रहना चाहिए। ऐसे निरीह बच्चों को किसी और से प्यार की आशा नहीं रखनी चाहिए। कुछ पाना हो तो उसके लायक बनना चाहिए और उसके लिए खूब और लगातार मेहनत करनी चाहिए।
जब गंगा तैरकर अपने गांव पहुंचे शास्त्री
शास्त्रीजी के गंगा में तैर कर जाने का किस्सा हमने किताबों में खूब पढ़ा है। हुआ यूं था कि उन्हें बनारस से गंगा पार कर अपने घर रामनगर जाना था मगर किराये के पैसे नहीं थे। उस किशोर उम्र में शास्त्री ने गंगा में छलांग लगा दी और अपने गांव पहुंच गए। बाद में शास्त्रीजी ने इस प्रसंग की चर्चा करते हुए लिखा था, “अंधेरा हो चला था। मुझे घर जाना था और पास में जाने के लिए पैसे नहीं थे। अत: मैंने तैरकर ही घर पहुंचने का निश्चय किया और गंगा में कूद पड़ा। सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। नौका पर सवार लोग कहने लगे, भला इस लड़के को देखो… अकेले ही तैर रहा है।”
नैशनल बुक ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित डॉ. राष्ट्रबंधु की पुस्तक ‘लाल बहादुर शास्त्री’ से साभार