जम्मू-कश्मीर के बाद अब पश्चिम चंपारण में बन रहे क्रिकेट बैट्स, पढ़िए- लालबाबू महतो के संघर्ष की कहानी

नागेंद्र नारायण,बगहा
भारत सरकार का आत्मनिर्भर भारत अभियान पश्चिम चंपारण जिला में लॉकडाउन के दौरान आए प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान साबित हो रहा है। जम्मू कश्मीर में क्रिकेट के मैच में इस्तेमाल होने वाले क्रिकेट बैट्स का निर्माण कर रहे मजदूरों से उनका काम लॉकडाउन में छिन गया। तब ये मजदूर अपने गृह जनपद पश्चिम चंपारण में आए तो उनलोगों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई थी। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को जब क्वारंटीन सेंटर में रखा गया तो वहां जिला प्रशासन ने स्कील मैपिंग कर उन्हें अपने ही काम को यहां करने को कहा गया।

जिला प्रशासन ने उन्हें भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत बैंक के माध्यम से लोन दिलवाया गया और आज वह मजदूर बाहर ना जाकर अपने ही जिले में रोजगार कर अपना और अपने पूरे परिवार का भरण पोषण कर रहे है। साथ ही अन्य मजदूरों को काम देकर उन्हें भी रोजगार के लिए पलायन करने से रोक रहे हैं।

‘लॉकडाउन में बंद हो गया काम, भुखमरी की आ गई थी नौबत’ जम्मू-कश्मीर में लॉकडाउन के दौरान आए लालबाबू महतो जिले के सहोदरा थाना क्षेत्र के राजपुर गांव निवासी हैं। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हम क्रिकेट बैट्स बनाने का काम करते थे। लॉकडाउन जब लगा तो वहां सभी काम बंद हो गए, जिससे भुखमरी का नौबत हो गई थी। किसी तरह से हमलोग वहां से भाग कर अपने गृह जनपद लौट आए। यहां आने के बाद हमलोगों को क्वारंटीन सेंटर में रखा गया था। इसी दौरान जिला प्रशासन ने हम लोगों से हमारे स्किल के बारे में पूछा और जब हम लोग क्वारंटीन खत्म कर बाहर निकले तो हमारी लोन दिलाने में मदद की।

‘अब हमें बिहार से बाहर जाने की जरूरत नहीं’लालबाबू ने बताया कि भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत योजना से 8 लाख 50 हजार रुपये लोन मिला है। अब हम यही पर अपना काम कर रहे हैं। साथ ही हमारे साथ 8 अन्य जगहों से आए मजदूर भी बैट्स और अन्य फर्नीचर बनाने का काम कर रहे हैं। अब हमें बिहार से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। वहीं काम कर रहे पन्ना लाल साह और अजय ने बताया कि अब हमलोग बाहर नहीं जाएंगे, यहीं पर काम कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे।

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