केरल में के नए परिसर के नाम को लेकर विवाद शुरू हो गया है। केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ तथा विपक्षी कांग्रेस ने यहां राजीव गांधी जैव-प्रौद्योगिकी केन्द्र के दूसरे परिसर का नाम आरएसएस विचारक दिवंगत एम एस गोलवलकर के नाम पर रखने के केन्द्र सरकार के फैसले पर शनिवार को आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि बीजेपी हर चीज को सांप्रदायिक रंग दे रही है। साथ ही उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में गोलवलकर के योगदान को लेकर भी सवाल उठाए।
केन्द्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने शुक्रवार को कहा था कि आरजीसीबी के दूसरे परिसर का नाम ‘श्री गुरूजी माधव सदाशिव गोलवलकर नेशनल सेंटर फॉर कम्प्लेक्स डिजीज इन कैंसर एंड वायरल इनफेक्शन’ रखा जाएगा।’ इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने केन्द्रीय मंत्री हर्षवर्धन से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए कहा कि परिसर का नाम गोलवलकर के बजाय अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किसी प्रतिष्ठित भारतीय वैज्ञानिक के नाम पर रखा जाना चाहिए।
विजयन ने हर्षवर्धन को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि यह यह प्रमुख अनुसंधान संस्थान है तथा राजनीतिक मतभेदों से ऊपर है। इससे पहले, एलडीएफ के संयोजक तथा माकपा की राज्य इकाई के सचिव ए विजयराघवन ने यहां पत्रकारों से कहा, ”भाजपा सांप्रदायिक तत्वों को आगे लाने के प्रयास कर रही है। इस योजना के तहत, उन्होंने आरजीसीबी के नए परिसर का नाम गोलवलकर के नाम पर रखने का निर्णय लिया है।” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर तथा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्नीथला ने भी इस फैसले का विरोध किया है।
थरूर ने सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए पूछा कि कि क्या केन्द्र सरकार ”धर्मांधतावादी हिलटर के प्रशंसक को याद रखना चाहती है, जिसने 1966 में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में दिए भाषण में विज्ञान के ऊपर धर्म के वर्चस्व पर जोर दिया था?” थरूर ने ट्वीट किया, ”जहां तक राजीव गांधी के योगदान की बात है, उन्होंने वैज्ञानिक नवाचार को आगे बढ़ाया तथा इसके लिये कोष आवंटित किया था।” चेन्नीथला ने कहा कि गोलवलकर के नाम पर परिसर का नाम रखना स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने एक बयान में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस फैसले को वापस लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि देश के विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गोलवलकर का क्या योगदान है? केन्द्र को इस फैसले को वापस लेना चाहिये। आरजीसीबी पहले राज्य सरकार द्वारा संचालित संस्थान था, जिसे अनुसंधान एवं विकास के मामले में अंतरराष्ट्रीय मानकों का केन्द्र बनाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार के हवाले कर दिया गया।