पश्चिम बंगाल में बीजेपी को कितना मजबूत बना पाएंगे ये दो चेहरे, जानें पूरा चुनावी गणित…

कोलकाता
पहले बिहार और फिर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जो कामयाबी मिली, उसके पीछे रणनीति को बहुत ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि कोई भी चुनाव हो, बीजेपी बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से लड़ती है। अब जबकि वेस्ट बंगाल के चुनाव होने हैं, तो इस प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव के लिए बीजेपी ने और को क्रमश: प्रभारी और सह प्रभारी बनाया है।

‘ट्राइड एंड टेस्टेड’ हैं विजयवर्गीयपश्चिम बंगाल के प्रभारी बनाए गए कैलाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं, वही उनकी राजनीतिक कर्मभूमि भी है। वहां वे मेयर, विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। 64 साल के कैलाश विजयवर्गीय ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1975 में की, जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े। वे एबीवीपी के स्टेट को-ऑर्डिनेटर भी रहे, साथ ही बीजेपी के विधि प्रकोष्ठ के स्टेट को-ऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी भी संभाली। भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी उन्होंने काम किया। पार्टी के विधि प्रकोष्ठ में भी रहे। उन्हें राजनीति में कामयाबी की पहली मंजिल आठ साल के अंदर ही मिल गई। वे 1983 में इंदौर नगर निगम के मेयर बने। कैलाश विजयवर्गीय लगातार 6 बार मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीते। 1990 से उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ना शुरू किया और कभी विधानसभा का चुनाव नहीं हारे। अब वे बीजेपी की राष्ट्रीय टीम में हैं। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय भी मध्य प्रदेश की राजनीति में हैं। वे बीजेपी के विधायक हैं। पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए बेहद अहम है और इस बार वहां के विधानसभा चुनाव में वह करो या मरो वाली स्थिति में है। कैलाश विजयवर्गीय को सांगठनिक क्षमता का धनी माना जाता है, लेकिन जब तब वे विवादित बयान भी देते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 18 सीटों पर जीत दर्ज की, जो तृणमूल कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था और बीजेपी के लिए यह आगे का रास्ता खोलने का अवसर था।

पार्टी को लगता है कि राज्य के लोगों ने बीजेपी को विकल्प के रूप में स्वीकार करना शुरू कर दिया है। अगले छह महीनों के अंदर बंगाल में चुनाव होने हैं। पार्टी नेतृत्व ने कैलाश विजयवर्गीय की संगठनात्मक क्षमता पर भरोसा करते हुए फिर से उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया, साथ ही पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी। उन्हें 2014 में बीजेपी ने हरियाणा चुनाव का प्रभारी बनाया था। बिना सीएम उम्मीदवार के चुनाव लड़ रही बीजेपी ने हरियाणा में बहुमत हासिल किया और कैलाश विजयवर्गीय को बीजेपी अपनी केंद्रीय टीम में ले आई। अमित शाह जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय को राष्ट्रीय महासचिव बनाया। तभी उन्हें पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी भी दी गई। बीजेपी के पास वहां खोने के लिए कुछ नहीं था और कभी लेफ्ट का गढ़ रहे बंगाल में भगवा झंडा बुलंद करने की जिम्मेदारी में कैलाश विजयवर्गीय खरे उतरे। पार्टी फिर से उन पर भरोसा जता रही है और वे पार्टी के भरोसे को सही साबित करने में जुटे हैं।

‘परसेप्शन वॉर’ में माहिर है मालवीयपश्चिम बंगाल की जंग में सोशल मीडिया बीजेपी के लिए कितना अहम होने वाला है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने आईटी सेल हेड अमित मालवीय को पश्चिम बंगाल का सह-प्रभारी बनाया है। भले ही अमित मालवीय और उनकी आईटी सेल पर ‘ट्रोलिंग’ और ‘फेक न्यूज’ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा असर का ही दिखता है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए बहुत अहम है। यहां जंग सिर्फ वोटों की नहीं है, बल्कि परसेप्शन की भी है। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा होती रहती है और बीजेपी यहां तृणमूल कांग्रेस पर हिंसा का आरोप लगाती है। बीजेपी कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद करने और यह परसेप्शन बनाने के लिए कि बीजेपी कार्यकर्ता किसी से नहीं डरते और सबका मुकाबला करने को तैयार हैं, सोशल मीडिया टीम को आगे किया गया है। अमित मालवीय और उनका आईटी सेल इस काम में जुट भी गए हैं। सोशल मीडिया के जरिए लगातार तृणमूल कांग्रेस को घेरा जा रहा है।

यूपी से ताल्लुक रखने वाले अमित मालवीय ने बैंकर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। आईसीआईसीआई बैंक में असिस्टेंट मैनेजर रहे, एचएसबीसी बैंक और बैंक ऑफ अमेरिका में भी वाइस प्रेजिडेंट रहे। 2009 में जनवरी में ट्विटर पर जब नरेंद्र मोदी ने अकाउंट खोला, तो उसी साल अमित मालवीय ने दिसंबर में अपना ट्विटर अकाउंट बनाया। अमित मालवीय की राजनीति में एंट्री ‘बीजेपी के दोस्त’ के जरिए हुई। दरअसल मालवीय ने ‘फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी’ नाम से एक फोरम बनाया और इसकी वेबसाइट लॉन्च की। इसके जरिए युवाओं को बीजेपी से जोड़ने का काम हुआ। इस वेबसाइट के जरिए ही वे बीजेपी नेताओं की नजर में आए। कई बैंकों में काम करने के दौरान उनकी बीजेपी नेता पीयूष गोयल दोस्ती हुई। 2012 में अमित मालवीय बीजेपी आईटी सेल से जुड़ गए। उस वक्त बीजेपी आईटी सेल के हेड अरविंद गुप्ता थे।

अमित मालवीय ने बीजेपी की सोशल मीडिया स्ट्रैटजी बनाने में मदद की। बीजेपी का 2014 का लोकसभा चुनाव कैंपेन सोशल मीडिया में भी छाया रहा। सोशल मीडिया का जितना इस्तेमाल बीजेपी ने किया, उतना कोई और पार्टी नहीं कर सकी। बीजेपी भारी बहुमत से चुनाव जीत गई। 2015 में अमित शाह ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला। संगठन में कई बदलाव किए गए। अब तक आईटी सेल के हेड रहे अरविंद गुप्ता को ‘MyGov’ का प्रॉजेक्ट दिया गया। फिर अमित मालवीय को आईटी सेल का हेड बनाया गया। अभी भी वे आईटी सेल के हेड हैं। सोशल मीडिया में आईटी सेल की खूब चर्चा होती रहती है।अमित मालवीय की अगुआई में बीजेपी की आईटी सेल इस तरह छाई रहती है कि इसे ट्रोल आर्मी तक कहा जाता है। आईटी सेल पर ट्रोलिंग के साथ ही फेक न्यूज फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं। लेकिन अमित मालवीय पर इन आरोपों का असर होता नहीं दिखता। कुछ वक्त पहले ही बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि आईटी सेल फेक ट्वीट के जरिए उनके खिलाफ अभियान चला रही है। ट्विटर ने भारत में सबसे पहले अमित मालवीय के ही एक ट्वीट को ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ के तौर पर फ्लैग किया।

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